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________________ सप्ततिका ५०३ मति श्रुताज्ञानियों के बन्धस्थान २३, २५, २६, २८, २९, ३० ये छह, उदयस्थान २१, २४, २५, २६, २७, २८, २९, ३०, ३१ ये नौ तथा सत्त्वस्थान ६२, ६१, ६०, ८५, ८४ और ८२ ये छह होते हैं। ते चिय बंधा संता उदया अडवीस तीस इगितीसा । मइ-सु- ओहीजुयले बंधा अडवीस आदि पंचेव ||४४४ || वेभंगे बंधा ६—२३।२५।२६।२८।२६।३०२ उदया ३ – २८|३०|३१| संता ६ - ६२/६३॥ ४२ मइ सुय ओहिजुयले बंधा ५ - २८|२९|३०|३१।१ । विभङ्गज्ञाने तान्येव कुमति- कुश्रुतोक्तबन्ध - सत्त्वस्थानानि । उदयस्थानानि अष्टाविंशतिक-त्रिंशक्केकत्रिंशत्कानि त्रीणि ॥ ४४४ ॥ विभङ्गज्ञाने बन्धस्थानपट्कम् २३।२५।२६।२८।२६।३० | उदयस्थानत्रिकम् २८|३०|३१ । सरवस्थानषट्कम् २।१६०८८४८२ । विभंगज्ञानियों के मतिश्रुताज्ञानियोंके समान वे ही बन्धस्थान और सत्त्वस्थान जानना चाहिए | किन्तु उदयस्थान अट्ठाईस, तीस और इकतीस ये तीन ही होते हैं। मति, श्रुत और अवधिज्ञानियोंके दर्शनमार्गणाकी अपेक्षा अवधिदर्शनियोंके बन्धस्थान अट्ठाईस आदि पाँच होते हैं ||४४४ || विभंगज्ञानियोंके बन्धस्थान २३, २५, २६, २८, २९, ३० ये छह, उदयस्थान २८, ३०, ३१ तीन तथा सत्तास्थान ६२, ६१, ६०, ८८, ८४ और २ ये छह होते हैं । मति, श्रुत और अवधि-युगलवालोंके बन्धस्थान २८, २९, ३०, ३१ और १ ये पाँच होते हैं । चवीसं दो उवरिं वजित्ता उदय अट्ठेव । चउ आइल्ला संता ऊवरिं दो वजिऊण चउ हेट्ठा || ४४५ ॥ उदया - २६।२५।२६।२७|२८|२६|३०|३१| संता - ६३२६१8०1८०1७६७८७७ मति श्रुतावधिज्ञानावधिदर्शनेषु बन्धस्थानान्यष्टाविंशतिकादीनि पञ्च २८ | २१ |३०|३१||| चतुर्वि ंशतिकं उपरिमनवकाष्टकद्वयं च वर्जयित्वा उदयस्थानान्यष्टौ २१।२५।२६।२७।२८।२६|३०|३१| चतुराद्यसत्त्वस्थानानि त्रिनवतिकादिचतुष्कं उपरिमदशक नवकद्वयं वर्जयित्वा चतुरःस्थसस्वस्थानानि अशीतिकादीनि चत्वारि इत्यष्टौ ६३/६२/६१/६० ८० ७६७८ ७७ || ४४५ ॥ उन्हीं उपर्युक्त जीवोंके चौबीस तथा दो अन्तिम स्थानोंको छोड़कर शेष आठ उद्यस्थान होते हैं । तथा सत्तास्थान आदिके चार और अन्तिम दोको छोड़कर अधस्तन चार, ये आठ होते हैं ||४४५|| मति श्रुत और अवधि युगलवालोंके उदयस्थान २१, २५, २६, २७, २८, २९, ३०, ३१ ये आठ तथा सत्तास्थान ६३, ६२, ६१, ६०, ८०, ७६, ७६ और ७७ ये आठ होते हैं । बंधा संता तेच्चिय मणपजे तीसमेव उदयं तु । केवलजुयले उदया चदु उवरि छच्च संत उवरिल्ला ||४४६ || मणपज्जे बंधा ५-- २८|२१|३०|३१।१ । उदयो १–३० संता ८- ६३ । ६२|१|१०|८०|७| ७८ ७७। केवलजुयले उदया ४ – ३० ३१।६८ संता ६--८०1७६७८ ७७|३०|| मन:पर्ययज्ञाने तान्येव संज्ञानोक्तबन्ध-सत्त्वस्थानानि भवन्ति । उदयस्थानमेकं त्रिंशत्कम् | मन:पर्ययज्ञाने बन्धस्थानपञ्चकम् २८|२६|३०|३१|१| उदयस्थानमेकम् ३० । सत्त्वस्थानाष्टकम् ६३।१२।११। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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