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________________ ५४ ज्ञानावरण और अन्तराय कर्मके बन्धादि त्रिकके संयोगी भंगोंका निरूपण दर्शनावरण कर्मके बन्धादि त्रिकके संयोगी भंगों का वर्णन भाष्य गाथाकार द्वारा उक्त भंगों का स्पष्टीकरण वेदनीय, आयु और गोत्रकर्मके बन्धादि विकके संयोगी भंगोंका वर्णन गोत्र कर्मके भंगों का स्पष्टीकरण वेदनीय कर्मके भंगोंका स्पष्टीकरण नरका कर्मके भंगों का वर्णन तिर्यगायु कर्मके मनुष्यायु कर्म के देवायु कर्मके 13 33 27 मोहनीय कर्मके बन्धस्थानोंका निरूपण भाष्य गाथाकार द्वारा उक्त बन्धस्थानोंका Jain Education International स्पष्टीकरण उक्त बन्धस्थानोंके अंगोंका निरूपण मोहनीय कर्मके उदयस्थानोंका निरूपण भाष्य गाथाकार द्वारा उक्त उदय स्थानोंकी प्रकृतियोंका निर्देश मोहनीय कर्मके सत्त्व स्थानोंका निरूपण भाष्य गाथाकारद्वारा सत्व स्थानोंकी प्रकृतियोंका निर्देश मोहनीय कर्मके बन्ध स्थानोंमें उदयस्थानोंका निरूपण भाष्य गाथाकार द्वारा उक्त अर्थका स्पष्टीकरण पञ्चसंग्रह ३००-३०२ २९९ मोहके बन्धस्थानोंमें सम्भव उदय स्थानोंका निरूपण मोहके उदयस्थानोंके मंगोंका निरूपण मोहके उदय-विकल्पोंके प्रकृति-परिवर्तन जनित भंगोंका परिमाण मोहकर्मके समस्त उदय-विकल्प और पदवृन्दोंका प्रमाण मोहकर्मके बन्धस्थानों में सत्व स्थानके भंगोंका सामान्य कथन उक्त भंगोंका विशेष कथन नामकर्म के बन्धस्थानोंका निरूपण ३०० ३०३ ३०५-२०७ ३०८ ३०९ ३११ ३१२ ३१४ ३१५ ३१६ ३१८ ३१९ ३१९ ३२० ३२१ ३२२ ३२३-३२५ ३२६ ३२७-३२८ ३२९ ३२९ ३३० ३३०-३३५ ३३५ नामकर्मके चारों गतियोंमें सम्भव बन्धस्थानोंका वर्णन नामकर्मके उक्त बन्धस्थानोंका स्पष्टीकरण नामकर्मके नरक गति संयुक्त बंधनेवाले अट्ठाईस प्रकृतिक बन्धस्थानकी प्रकृतियाँ नामकर्मके तिर्यग्गतियुक्त बँधनेवाले प्रथम तीस प्रकृतिक बन्धस्थानकी प्रकृतियाँ नामकर्मके द्वितीय तीस प्रकृतिक बन्धस्थानका वर्णन नामकर्मके तृतीय तीस प्रकृतिक बन्धस्थानका वर्णन नामकर्मके उनतीस प्रकृतिक बन्धस्थानका निरूपण नामकर्मके छब्बीस प्रकृतिक वन्पस्थानका निरूपण नामकर्मके प्रथम पच्चीस प्रकृतिक बन्धस्थानका वर्णन नामकर्मके द्वितीय पच्चीस प्रकृतिक बन्धस्थानका वर्णन नामकर्मके तेईस प्रकृतिक बन्धस्थानका वर्णन मनुष्यगति युक्त बंधनेवाले तीस प्रकृतिक बन्धस्थानका निरूपण मनुष्यगति युक्त बँधनेवाले प्रथम, द्वितीय और तृतीय उनतीस प्रकृतिक बन्धस्थानोंका निरूपण मनुष्यगति युक्त बंधनेवाले पच्चीस प्रकृतिक बन्धस्थानका निरूपण देवगति संयुक्त बँधनेवाले इकतीस प्रकृतिक बन्धस्थानका निरूपण देवगति संयुक्त बँधनेवाले तीस प्रकृतिक बन्धस्थानका निरूपण ३३६ २३६ देवगति संयुक्त बंधनेवाले प्रथम और द्वितीय उनतीस प्रकृतिकबन्ध स्थानका निरूपण देवगति संयुक्त बँधनेवाले प्रथम और द्वितीय अट्ठाईस प्रकृतिक बन्धस्थानका निरूपण नामकर्मके एक प्रकृतिक बन्धस्थानका निरूपण सप्ततिकाकार द्वारा नामकर्मके उदयस्थानोंका वर्णन For Private & Personal Use Only ३३७ ३३७ ३३८ ३३९ ३३९ ३४० ३४१ ३४४-३४५ ३४१ ३४२ ३४३ ३४५ २४६ ३४६ ३४७ ३४८ ३४८ ३४९ www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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