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________________ सप्ततिका ५०१ वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंके बन्धस्थान २६ और ३० ये दो, उदयस्थान २५ प्रकृतिक; एक; तथा सत्तास्थान ६३, ६२, ६१,६० ये चार होते है। आहारककाययोगियके बन्धस्थान २८ और २६ ये दो होते हैं। संतादिल्ला चउरो उदया सत्तट्टवीस उणतीसा । तम्मिस्से ते बंधा उदयं पणुवीस संत पढम चतुं ॥४३६॥ उदया ३-२७।२८।२६। संता ४-१३।१२।११।६०। मिस्से ते बंधा २-२८।२६। उदयो - २५ । संता ४-१३।१२। 1180 । आहारके सरवस्थानान्याद्यानि चत्वारि १३।१२।११।१० । उदयस्थानानि सप्तविंशतिकाष्टाविंशतिकनवविंशतिकानि त्रीणि २७।२८।२१। तन्मिश्रे आहारकमिश्रे ते आहारकोक्ते अष्टाविंशतिकैकोनत्रिंशत्के बन्धस्थाने द्व २८२६ । उदयस्थानमेकं पञ्चविंशतिकम् २५ । सत्वस्थानप्रथमचतुष्कम् ६३।१२।११।१०। गोम्मट्टसारे आहारके तन्मिश्रे च त्रि-द्विनवतिकद्वयम् ॥६३।६२ ॥४३॥ आहारककाययोगियोंके उदयस्थान सत्ताईस और अट्ठाईस ये दो तथा सत्तास्थान आदिके चार होते हैं । आहारकमिश्रकाययोगियोंमें बन्धस्थान अट्ठाईस और उनतीस ये दो; उदयस्थान पच्चीस प्रकृतिक एक और सत्तास्थान प्रारम्भके चार होते है ।।४३६॥ आहारककाययोगियोंमें उदयस्थान २७, २८ ये दो; तथा सत्तास्थान ६३, १२, ६१, ६० ये चार होते हैं । आहारकमिश्रकाययोगियोंमें बन्धस्थान २८, २६ ये दो; उदयस्थान २५ प्रकृतिक एक; तथा सत्तास्थान ६३, ६२, ६१, ६० ये चार होते हैं। कम्मइए तीसंता बंधा इगिवीसमेव उदयं तु । दो उवरिं वजित्ता संता हिडिल्लया सव्वे ॥४४०॥ कम्मइए बंधा ६-२३।२५।२६।२८।२६।३०। उदयो १-२१। संता ११-१३।१२।६।६०८८। ८४१२८०1७६७८७७ । कार्मणकाययोगे बन्धस्थानानि प्रयोविंशतिकादि-निशस्कान्तानि षट् २३।२५।२६।२८।३० । उदय. स्थानमेकविंशतिकमेकम २१ । केवलिसमुद्धातापेक्षया विंशतिकञ्च । दशक-नवकस्थानद्वयं वर्जयित्वा अधःस्थितानि सत्त्वस्थानानि सण्येकादश १३।१२।११।६०1८८1८४१२८०१७६१७८७७ ॥४४०॥ ___ इतियोगमार्गणा समाप्ता। कार्मणकाययोगियोंमें आदिसे लेकर तीस तकके बन्धस्थान; इक्कीस प्रकृतिक एक उदयस्थान और अन्तिम दोको छोड़कर नीचेके सर्व सत्तास्थान होते हैं ॥४४०॥ कार्मणकाययोगियोंके बन्धस्थान २३, २५, २६, २८, २६, ३० ये छह; उदयस्थान २१ प्रकृतिक एक; तथा सत्तास्थान ६३, ६२, ६१, ६०, ८८, ८४, ८२, ८०, ७६, ७८ और ७७ ये ग्यारह होते हैं। ते चिय संता वेदे बंधा सव्वे हवंति उदया य । इगिवीस पंचवीसाई इगितीसंतिया णेया ॥४४१॥ वेदे बंधा ८-२३।२५।२६।२८।२६।३०।३१।३। उदया ८-२१।२५।२६।२७।२८।२१।३०।३१। संता ११-१३।१२।११18011८1८४८1८1७६७८७७। वेदमार्गणायां त्रिषु वेदेषु तान्येव कार्मणोक्तान्येकादश सत्वस्थानानि । बन्धस्थानानि सर्वाण्यष्टौ । उदयस्थानान्यष्टौ एकविंशतिक-पञ्चविंशतिकादीन्येकत्रिंशत्कान्तानि चाष्टौ ज्ञेयानि ॥४४१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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