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________________ पञ्चसंग्रह पंचेन्द्रिय जीवोंमें चौबीसको छोड़ कर शेष सर्व उदयस्थान तथा सर्व ही सत्त्वस्थान होते हैं, ऐसा जानना चाहिए । इसी प्रकार काय आदि मार्गणाओंमें भी बन्ध, उदय और सत्त्वस्थान लगा लेना चाहिए || ४३१ ॥ ४१८ पंचेन्द्रियोंमें बन्धस्थान २३, २५, २६, २८, २९, ३०, ३१, १, उदयस्थान २९, २५, २६, २७, २८, २९, ३०, ३१, ६, ८ तथा सत्त्वस्थान ६३, ६२, ६१, ६०, ८४, ८२, ८०, ७६, ७८, ७७, १० और ६ होते हैं । यहाँ इतना विशेष ज्ञातव्य है कि मूलसप्ततिकाकारने नामकर्मके वन्धादिस्थानोंका निर्देश केवल गति और इन्द्रियमार्गणा में ही किया है, शेष मार्गणाओंमें नहीं । अतएव भाष्यगाथाकारने इस गाथाके उत्तरार्ध द्वारा उन्हें जाननेका यहाँ निर्देश किया है । अव भाष्यगाथाकार उक्त निर्देशके अनुसार शेष मार्गणाओं में नामकर्मके वन्धादि स्थानोंका निरूपण करते हैं पंचसु थावरका बंधा पढमिल्लया हवे पंच । अट्ठावीस वजि उदया आदिल्लया पंच ||४३२॥ थावराणं बंधा ५- २३।२५।२६।२६|३०| उद्या ५- २१।२४।२५|२६|२७| पञ्चसु पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतिकायिकेषु प्रथमाः पञ्च बन्धाः - त्रयोविंशतिकादीनि पञ्च बन्धस्थानानि भवन्तीत्यर्थः २३।२५।२६।२६।३० । अष्टाविंशतिकवर्जितानि उदयस्थानान्याद्यानि पञ्च २५|२४| २५।२६।२७। न तेजाद्विके सप्तविंशतिकं, तस्यैकेन्द्रियपर्याप्तयुतातपोद्योतान्यतरयुतस्वात्तत्रानुदयात् ॥४३२॥ कायमार्गणाकी अपेक्षा पाँचों ही स्थावरकायिकों में प्रारम्भके पाँच बन्धस्थान होते हैं । तथा अट्ठाईसको छोड़कर आदिके पाँच उद्यस्थान होते हैं ||४३२|| स्थावरकायिकोंके २३, २५, २६, २६, ३० ये पाँच बन्धस्थान, तथा २१, २४, २५, २६, और २७ ये पाँच उदयस्थान होते हैं । बाणउदि उदिता अड चदु दुरधियमसीदि वियले ते । संता उदया अ णव छिगिवीस तीस इगितीसा ||४३३ || संता ५- ६२|०४२ वियले बंधा ५ - २३।२५।२६।२६|३०| उदद्या ६-२१।२६।२८१ २६/३० |३१| संता ५-६२।६०८८८४८२ | पञ्चस्थावरकायिकेषु सत्वस्थानपञ्चकम् – द्वानवतिक ९२ नवतिक ६० अष्टाशीतिक मम चतुरशीतिक ८४ द्वशीतिकानि पञ्च । विकलत्रय - त्रसजीवेषु तानि पूर्व विकलत्रयोक्तानि बन्ध-सत्वस्थानानि । उदयस्थानानि अष्ट नव घडेकाधिकविंशतिकानि त्रिंशत्कैक त्रिंशत्के च विकलत्रयत्रसजीवेषु बन्धस्थानानि पञ्च २३।२५।२६।२६।३० । उदयस्थानपट्कं २१।२६।२८।२६।३०:३१ । सत्त्वस्थानपञ्चकम् - ६२६० ८४८२ ॥४३३॥ पाँचों स्थावरकायिकोंमें बानबै, नब्बै, अट्ठासी, चौरासी और बियासीप्रकृतिक पाँच सत्त्वस्थान होते हैं । विकलेन्द्रिय सकायिकांमें वे ही अर्थात् स्थावरकायिकोंवाले बन्धस्थान और सत्त्वस्थान होते हैं । किन्तु उदयस्थान इक्कीस, छब्बीस, अट्ठाईस, उनतीस, तीस और इकतीस प्रकृतिक छह होते हैं ||४३३॥ स्थावरोंके सत्त्वस्थान ६२, ६०, ८ ८४, ८२ ये पाँच होते हैं । विकलत्रयोंके बन्धस्थान २३, २५, २६, २६, ३०, ३१ ये छह; तथा सत्तास्थान ६२, ६०, ८८, ८२ और ८२ ये पाँच होते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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