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________________ सप्ततिका ४६३ अविरयउदयपयडीओ ६० अभंगगुणा ४८० । एवमण्णे वि ओरालियमिस्सजोगभंगा ४८० । एवमसंजए तिसु जोगेसु अण्णे वि मेलिया पयबंधा २४०० । अविरतोदयप्रकृतयः ६० पुवेद-हास्यादिद्वय-कपायचतुष्क ४ हतैरष्टभिर्भङ्गुणिता ४८०। एवमन्येऽपि औदारिकमिश्रयोगेनकेन १ गुणिता भङ्गाः ४८०। एवमसंयते त्रिषु योगेषु अन्येऽपि मीलिताः पदवन्धाः २४००। अविरतगुणस्थानमें उदयप्रकृतियाँ ६० हैं, उन्हें आठ भंगोंसे गुणा करनेपर ४८० होते हैं । ये औदारिकमिश्रकाययोग-सम्बन्धी और भी ४८० भंग होते हैं। इस प्रकार असंयतगुणस्थानमें तीनों योगोंके सर्व भंग मिला देनेपर २४०० पदवृन्द-भंग आ जाते हैं। अब नौवें और दश गुणस्थानके पद-वृन्दोका प्रमाण कहते हैं बारसभंगे विगुणे उवरिमभंगा वि पंच पक्खिविय । णवजोगेहि य गुणिए इगिसट्टा विगसया होंति ॥३५६॥ अनिवृत्तिकरण-सूचमसाम्पराययोरुदयान् प्राह-[ 'बारसभंगे विगुणे' इत्यादि । ] उपरिमाः अनिवृत्तिकरण-सूचमसाम्पराययोः पुवेद-संज्वलनचतुष्कमिति पञ्चप्रकृतिभङ्गाः प्रक्षेपणीयाः। तथाहि-अनिवृत्तिकरणस्य सवेदभागे द्वादशभिः १२ भंगैर्द्विकोदये गुणिते चतुर्विंशतिः २४ । अवेदभागे चतुभिरेकोदयेन गुणिते ४ । सूचमे सूचमलोभोदयः । एवमेकोनत्रिंशदुदगाः २६ नवभिर्योगै । गुणिता एकपट्यधिकद्विशतप्रमिता २६१ उदयप्रकृतिविकल्पा भवन्ति ॥३५६॥ ____ अनिवृत्तिकरणके संवेदभागमें दो उदयप्रकृतियोंसे गुणित बारह अर्थात् चौबीस भंग होते हैं । अवेभागमें एक उदयप्रकृतिवाले चार भंग होते हैं । सूक्ष्मसाम्परायमें एक सूक्ष्मलोभ होता है । इन पाँचको उपर्युक्त चौबीसमें प्रक्षेप करनेपर उनतीस होते हैं। उन्हें नौ योगोंसे गुणित करनेपर दो सौ इकसठ भंग हो जाते हैं ॥३५६।। अणियट्टीए उदया २ बारसभंगगुणा २४ । एगोदएहिं चदुहिं सह २८ । सुहुमे एगोदएण सह २६ । एदाओ पयडीओ णवजोगगुणा २६१ । अनिवृत्तौ उदयौ २ द्वादशभङ्गगुणिताः २४ एकोदयैश्चतुर्भिः सह २८ सूक्ष्मे एकोदयेन सह २६ । एताः प्रकृतयो नवयोगगुणिताः २६१ । र अनिवृत्तिकरणमें सवेदभागमें उदयप्रकृतियाँ दोको बारह भंगोंसे गुणा करनेपर २४ होते हैं। उनमें अवेदभागको एक उदयवाली चार प्रकृतियोंको मिलानेपर २८ होते हैं । सूक्ष्मसाम्परायमें उदय होनेवाली एक प्रकृतिके मिलानेपर २६ होते हैं। इन २६ प्रकृतियोंको नौ योगोंसे गुणा करनेपर २६१ पदवृन्द-भंग प्राप्त होते हैं। अब मोहकर्मके योगोंकी अपेक्षा संभव सर्व भंगोंका निरूपण करते है "णउदी चेव सहस्सा तेवण्णं चेव होंति बोहव्वा । पयसंखा णायव्वा जोगं पडि मोहणीयस्स ॥३६॥ एवं मोहे जोगं पडि गुणठाणेसु पयबंधा १००५३ । 1. सं० पञ्चसं० ५, 'असंयतेऽन्ये' इत्यादिगद्यांशः (पृ०२०८) 2.५, ३७४। 3. ५, 'नवमे उदये' इत्यादिगद्यभागः (पृ० २०६)। 4.५, ३७५ । 5. ५, 'इति मोहे' इत्यादिगद्यभागः (पृ० २०६)। *ब गुणा। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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