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सप्ततिका
मिश्र में उदयसम्बन्धी प्रकृतियाँ बत्तीस होती हैं। उन्हें दश योगोंसे गुणा करने पर तीन सौ बीस भंग तीसरे गुणस्थान में जानना चाहिए ।
मिश्र में उदयप्रकृतियाँ ३२ को १० योगों से गुणा करने पर ३२० पदवृन्द भंग होते हैं । अब अविरत गुणस्थानके पदवृन्द भंग बतलाते हैं
अविरसम्मे सट्टी दसजोगहया य छच्च सया ॥ ३५० ॥
उदया ६० दसजोगहगुणा ६००
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अविरतसम्यग्दृष्टौ । ७७ एषामुदयाः षष्टिः ६० । कार्मणौदारिकमिश्र - वैक्रियिकमिश्रान् पृथक्
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वयतीति दशभियोगः १० गुणिताः षट्शतप्रमिता उदयविकल्पा ६०० असंयतस्य भवन्ति ॥ ३५० ॥ अविरतसम्यक्त्व गुणस्थान में उदयसम्बन्धो प्रकृतियाँ साठ होती हैं । उन्हें दश योगों से गुणा करने पर छह सौ पदवृंद-भंग होते हैं ।। ३५० ||
अविरतमें उदयप्रकृतियाँ ६० को १० योगों से गुणा करने पर ६०० पदवृन्द भङ्ग होते हैं । अब देशविरतगुणस्थानके पदवृन्द भङ्ग कहते हैं
वावण्ण देसविरदे भंगवियप्पा य हुंति उदयगया ।
णव जोगेहि य गुणिया चउसयमडसट्ठि गायव्वा ॥ ३५९ ॥ उदया ५२ नवजोगगुणा ४६८ ।
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देशसंयते ७।७ । ६।६ एषामुदयगतभङ्गाः द्वापञ्चाशत् ५२ नवभियोगैः ६ गुणिताः अष्टषष्ट्यग्रचतुः
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शतप्रमिताः ४६८ मोहोदया देशे भवन्ति ज्ञातव्याः || ३९१ ॥
देशविर में उदयगत भङ्ग - विकल्प बावन होते हैं । उन्हें नौ योगोंसे गुणा कर देने पर चार सौ अड़सठ पद वृन्द-भंग होते हैं, ऐसा जानना चाहिए || ३५१ ॥
देशविरतमें उदयप्रकृतियाँ ५२ को नौ योगों से गुणा करने पर ४६८ पदवृन्द भंग प्राप्त होते हैं ।
अब प्रमत्तविरत गुणस्थानके पदवृन्द भंग कहते हैं -
चदा तु पत्ते भंगवियप्पा वि होति बोहव्वा । एक्कारसजोगहया चउसीदा होंति चत्तसया || ३५२ ॥
उदया ४४ एयारह जोगगुणा ४८४ ।
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प्रमत्ते ६।३ । ५।५ एषां प्रकृत्युदयाश्चतुश्चत्वारिंशत् ४४ भङ्गविकल्पा भवन्ति । ते एकादशभियोगे -
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११ हताश्चतुरशीत्यधिकचतुःशतप्रमिताः ४८४ उदयविकल्पाः प्रमत्ते ज्ञातव्याः ॥ ३५२ ॥
प्रमत्तगुणस्थानमें उदयस्थानसम्बन्धी भंग-विकल्प चवालीस होते हैं, ऐसा जानना चाहिए । उन्हें यहाँ सम्भव चार मनोयोग, चार वचनयोग, औदारिककाययोग, आहारककाययोग और आहारकमिश्रकाययोग, इन ग्यारह योगोंसे गुणा करने पर चार सौ चौरासी पदवृन्दभङ्ग प्राप्त होते हैं ॥ ३५२ ||
प्रमत्त उदयविकल्प ४४ को ११ योगोंसे गुणा करने पर ४८४ पदवृन्दभङ्ग आ जाते हैं ।
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