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________________ सप्ततिका विरताविरतमें उदद्यस्थान सम्बन्धी विकल्प नियमसे आठ ही होते हैं । उन्हें नौ योगों से गुणा करने पर बहत्तर भंग होते हैं ||३३३|| देशविरतमें उदयस्थान ८ को ६ योगों से गुणा करने पर ७२ भंग होते हैं । अब प्रमत्तविरत के योगसम्बन्धी भंग कहते हैं अ य पमत्तभंगा जोगा एगारसा य तस्सेव । तेहि हया अडसीया भंगवियप्पा वि ते होंति ॥ ३३४ || उदया एयारहजोगगुणा मम । ५ ४ प्रमत्तस्य ६।६ । ५।५ मिलित्वाऽष्टौ भङ्गाः ८ तस्य प्रमत्तस्यैकादश योगाः ११ तैर्गुणिताः अष्टा ७ ६ शीतिरुदयस्थानविकल्पाः ८८ भवन्ति ॥ ३३४ ॥ प्रमत्तगुणस्थान में उदयस्थानके विकल्प आठ होते हैं । उन्हें इस गुणस्थान में सम्भव ग्यारह योंगोंसे गुणा कर देने पर अट्ठासी भग होते हैं ||३३४ ॥ प्रमत्तविरतमें उदयस्थान को ११ योगों से गुणित करने पर भङ्ग होते हैं । अब अप्रमत्तविरत के योगसम्बन्धी भंग कहते हैं ४५१ अट्ठेवोदयभंगा पमत्तिदरस्स चावि बोहव्वा । वजोगेहि हदा ते भंगा वावत्तरी होंति ॥ ३३५॥ उदया नवजोगगुणा ७२ । Jain Education International ५ ४ अप्रमत्तस्य ६।६ । ५।५ मिलित्वाऽष्टौ भङ्गाः ८ नवभिर्योर्गेर्हता द्वासप्ततिरुदयस्थान विकल्पाः ७२ ७ ६ भवन्ति ॥ ३३५॥ अप्रमत्तविरतके उदयस्थानके भेद आठ ही जानना चाहिए। उन्हें नौ योगों से गुणित करने पर बहत्तर भङ्ग हो जाते हैं ||३३५ || अप्रमत्तविरत में उदयस्थान ८ को ६ योगों से गुणित करने पर ७२ भङ्ग होते हैं । अब अपूर्वकरणके योगसम्बन्धी भंगोका निरूपण कर शेष अर्थका उपसंहार करते हैंचभंगापुव्वस्स य णवजोगहया हवंति छत्तीसा | दे चवीसहदा ठाणवियप्पा य पुव्युत्ता ||३३६ ॥ उदय ४ नवजोगगुणा ३६ । ४ ६ अपूर्वस्य ५५ इति चतुर्भङ्गाः ४ नवयोगैर्हताः पट्त्रिंशदुदयस्थानविकल्पाः ३६ । एतावत्पर्यन्तं सर्वत्रोदयस्थानविकल्पाः गुणकारश्चविंशतिः । तथाहि - मिथ्यादृष्टौ ८०।१२ । सासादने ४८ गु० २४ । मिश्र ४० गु० २४ | अविरते ८० गु० २४ । देशे ७२ । गु० २४ । प्रमत्ते ८८ गु० २४ ! अप्रमत्त े ७२ गु० २४ । अपूर्वे ३६ गु० २४ ॥३३६॥ For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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