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________________ ३८२ पञ्चसंग्रह इतना विशेष ज्ञातव्य है कि जिन आचार्यों के मतसे सभी केवलज्ञानी केवलिसमुद्घात करते हुए सिद्ध होते हैं, उनके मतानुसार केवलिसमुद्धातमें सम्भव अपर्याप्त दशाको अपेक्षा बीस, इक्कीस, छब्बीस, सत्ताईस, अट्ठाईस, उनतीस और तीस प्रकृतिक उदयस्थान भी बतलाये गये हैं । परन्तु प्राकृत पंचगंग्रहकारको यह मत अभीष्ट नहीं रहा है, अतएव उन्होंने इन उदयस्थानों को नहीं बतलाया, जब कि संस्कृत पंचसंग्रहकारने उन्हें बतलाया है। असंजमे तहा ठाणं णेयं मिच्छाइचउसु गुणट्ठाणमिव । दसविरए च भंगा णेया तससंजमे चेव ॥२०२॥ अवसेससंजमट्ठाणं पमत्ताइगुणट्ठाणमिव । संयममार्गणायां त्रससंयमे मिथ्यादृष्ट्याद्यसंयतगुणस्थानोक्तं ज्ञेयम् । किन्तु असंयमे उदयस्थानानि २१।२४।२५।२६।२७।२८।२६।३०।३। ससंयमें देशसंयमे देशविरतोक्तभङ्गरचना ज्ञेया। किन्तु उदयस्थानद्वयम् २ । अवशेष-संयमस्थानेषु प्रमत्तादिगुणस्थानोक्तोदयस्थानानि । किन्तु सामायिकच्छेदोपस्थापनयोः २५ । २७ । २८ । २६ । ३०। परिहारविशुद्धिसंयमे त्रिंशत्कमेकस्थानम् ३० । सूचमसाम्पराये ३० । यथाख्याते २० । २१ ।२४।२६ । २७ . २८ । २४ । ३० । ३३ । । ८ । ॥२०२३॥ संयममार्गणाकी अपेक्षा असंयममें मिथ्यात्व आदि चार गुणस्थानोंके समान उदयस्थान जानना चाहिए । अर्थात् असंयममें इक्कीस, चौबीस, पच्चीस, छब्बीस, सत्ताईस, अट्ठाईस, उनतीस, तीस और इसतीस प्रकृतिक नौ उदयस्थान होते हैं । त्रससंयम अर्थात् देशसंयममें देशविरत गुणस्थानके समान तीस और इकतीस प्रकृतिक दो उदयस्थान होते हैं । अवशेष संयमोंके उदयस्थान प्रमत्तादिगुणस्थानोंके उदयस्थानके समान जानना चाहिए ॥२०२३॥ विशेषार्थ-सामायिक और छेदोपस्थापना संयममें पच्चीस, सत्ताईस, अट्ठाईस, उनतीस और तीस प्रकृतिक पाँच उदयस्थान होते हैं। परिहार विशुद्धि और सूक्ष्म साम्पराय संयममें तीस प्रकृतिक एक-एक ही उदयस्थान होता है। यथाख्यातसंयममें तीस, इकतीस, नौ और आठ प्रकृतिक चार उदयस्थान होते हैं। किन्तु सभी केवलज्ञानियोंके केवलिसमुद्धात माननेवाले आचार्यों के मतको अपेक्षा बीस, इक्कीस, छव्वीस, सत्ताईस, अट्ठाईस, उनतीस, तीस, इकतीस, नौ और आठ प्रकृतिक दश उदयस्थान पाये जाते हैं। अचक्खुस्स ओघभंगो चक्खुस्स य चउ-पंचिंदियसमं णेयं ॥२०३॥ दर्शनमार्गणायां भचक्षुर्दर्शने गुणस्थानोक्तवत् २१॥२४।२५।२६।२७।२८।२६।३०।३१। चक्षुर्दर्शने चतुःपञ्चेन्द्रियोक्तसदृशं ज्ञेयम् । किन्तु २१।२५।२६।२७।२८।२६।३०।३१ भवन्ति ॥२०३॥ दर्शनमार्गणाकी अपेक्षा अचक्षुदर्शनके उदयस्थान ओघके समान और चक्षुदर्शनके उदयस्थान चतरिन्द्रिय और पंचेन्द्रियजीवोंके समान जानना चाहिए ॥२०३॥ विशेषार्थ-अचक्षुदर्शनमें इक्कीस, चौबीस, पच्चीस, छब्बीस, सत्ताईस, अट्ठाईस, उनतीस, तीस और इकतीस प्रकृतिक नौ उदयस्थान होते हैं । चतुदर्शनमें इक्कीस, पच्चीस; छब्बीस, सत्ताईस, अट्ठाईस, उनतीस, तीस और एकतीस प्रकृतिक आठ उदयस्थान होते हैं, इनमें प्रकृति-सम्बन्धी जो अन्तर होता है, वह ज्ञातव्य है। ___ ओधिय केवलदंसे ओधिय-केवलणाणमिव । तेजप्पउ मासुक्के सण्णी पंचिंदियभंगमिव ॥२०४॥ *ब अवधि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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