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________________ सप्ततिका ३३३ सत्ताईसप्रकृतिक सत्त्वस्थान होता है और सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वेलना हो जाने पर छब्बीसप्रकृतिक सत्त्वस्थान होता है। इसके अतिरिक्त छब्बीसप्रकृतिक सत्त्वस्थान अनादिमिथ्यादृष्टके भी होता है। इसी प्रकार अनन्तानुबन्धीके उदयसे रहित नौप्रकृतिक उदयस्थानमें अट्राईस सत्त्वस्थान तो होता ही है। किन्तु अनन्तानुबन्धीके उदयसे सहित उसी नौ प्रकृतिक उदयस्थानमें आदिके तीनों ही सत्त्वस्थान सम्भव है। दशप्रकृतिक उदयस्थान अनन्तानुबन्धीके उदयवाले जीवके ही होता है, अतएव उसमें अट्ठाईस, सत्ताईस और छब्बीसप्रकृतिक तीनों सत्त्वस्थान बन जाते हैं। इक्कीसप्रकृतिक बन्धस्थानमें अट्ठाईसप्रकृतिक एक सत्त्वस्थान होता है। इसका कारण यह है कि इक्कीसप्रक्रतिक बन्धस्थान सासादनगणस्थानवी जीवके ही होता और यह गुणस्थान उपशमसम्यक्त्वसे च्युत हुए जीवके ही होता है। किन्तु ऐसे जीवके दर्शनमोहनीयकी तीनों प्रकृतियोंका सत्त्व अवश्य पाया जाता है । इक्कोसप्रकृतिक बन्धस्थानवाले जीवके उदयस्थान सात, आठ और नौप्रकुतिक तीन पाये जाते हैं, अतएव उनके साथ एक ही अट्ठाईस प्रकृतिक सत्त्वस्थान होता है। सत्तरह प्रकृतिक बन्धस्थानके साथ अट्ठाईस, सत्ताईस, चौबीस, तेईस, बाईस और इक्कीसप्रकृतिक छह सत्त्वस्थान होते हैं। सत्तरहप्रकृतिक बन्धस्थान सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि इन दो गुणस्थानोंमें होता है। इनमेंसे सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके सात, आठ और नौप्रकृतिक तीन उदयस्थानसे होते हैं और अविरतसम्यग्दृष्टि जीवोंके छह, सात, आठ और नौ प्रकृतिक चार उदयस्थान होते हैं। इनमें से छहप्रकृतिक उदयस्थान उपशमसम्यक्त्वी या क्षायिकसम्यक्त्वी जीवोंके प्राप्त होता है। इनमें से उपशमसम्यक्त्वी जीवोंके अट्ठाईस और चौबीस प्रकृतिक दो सत्त्वस्थान होते हैं। अट्ठाईसप्रकृतिक सत्त्वस्थान प्रथमोपशमसम्यक्त्वके समय होता है। जो जीव अनन्तानुबन्धीका उपशम करके उपशमश्रेणी पर चढ़कर गिरा है, उस अविरतसम्यग्दृष्टिके भी अट्ठाईस प्रकृतिक सत्त्वस्थान होता है । तथा जिसने अनन्तानुबन्धीकी उद्वेलना या विसंयोजना की है, उस औपशमिक अविरतसम्यक्त्वीके चौबीस प्रकृतिक सत्त्वस्थान होता है। किन्तु क्षायिक सम्यग्दृष्टिके केवल इक्कीस प्रकृतिक एक ही सत्त्वस्थान होता है। क्योंकि अनन्तानुबन्धिचतुष्क और दर्शनमोहत्रिक इन सात प्रकृतियोंके क्षय होने पर ही क्षायिकसम्यक्त्वकी प्राप्ति होती है । इस प्रकार छह प्रकृतिक उदयस्थानमें अट्ठाईस, चौबीस और इक्कीस प्रकृतिक तीनों ही सत्त्वस्थान होते हैं । सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके सात प्रकृतिक उदयस्थानके साथ अट्ठाईस, सत्ताईस और चौबीसप्रकृतिक तीन सत्त्वस्थान होते हैं। इनमेंसे अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्तावाला जो जीव तीसरे गुणस्थानको प्राप्त होता है, उसके अट्ठाईसप्रकृतिक सत्त्वस्थान होता है। किन्तु जिस मिथ्या दृष्टिने सम्यक्त्वप्रकृतिकी उद्वेलना करके सत्ताईस प्रकृतिक सत्त्वस्थानको तो प्राप्त कर लिया है, किन्तु अभी सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वेलना नहीं की है, वह यदि मिथ्यात्वसे सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थानको प्राप्त होता है, तो उसके सत्ताईसप्रकृतिक सत्त्वस्थान होता है। सम्यग्दृष्टि रहते हुए जिसने अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना की है, वह यदि संक्लेशपरिणामोंके वशसे सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थानको प्राप्त हो, तो उसके चौबीसप्रकृतिक सत्त्वस्थान पाया जाता है। किन्तु अविरतसम्यक्त्वी जीवके सात प्रकृतिक उदयस्थानके रहते हुए अट्ठाईस, चौबीस, तेईस, बाईस और इक्कीस पाँच सत्त्वस्थान होते हैं । इनमें से अट्ठाईस और चौबीस प्रकृतिक सत्त्वस्थान तो उपशमसम्यग्दृष्टि और वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंके होता है। किन्तु इतनी विशेषता है कि चौबीस प्रकृतिक सत्त्वस्थान अनन्तानुबन्धिचतुष्ककी विसंयोजना करनेवालोंके हो होता है । तेईस और बाईस प्रकृतिक सत्त्वस्थान केवल वेदकसम्यक्त्वी जीवोंके ही होते हैं । इसका कारण यह है कि आठ वर्षसे ऊपरकी आयुवाला जो वेदकसम्यक्त्वी जीव दर्शनमोहकी क्षपणाके लिए अभ्युद्यत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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