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________________ ३२८ अनिवृत्तिकरणस्य द्विकोदये इति पञ्चबन्धक-चतुर्बन्धकानिवृत्तिकरणभागयोस्त्रिवेद-चतुः संज्वलना ५ ४ नामेकै कोदय सम्भवं द्विप्रकृत्युदयस्थानं स्यात् । तत्र संज्वलनक्रोध-मान- माया लोभाश्चत्वारः ४ त्रिभिर्वेद - २ १ पञ्चसंग्रह ५ ४ र्हताः द्वादशः भङ्गा भवन्ति । द्विद्वादश द्वादश द्वादशेति २ १ | पक्षान्तरापेक्षया चतुर्बन्धकचरमसमये १२ १२ अनिवृत्तिकरणस्य उ० २ त्रिद्वर्थ े कबन्धबन्धकेषु अबन्धके पञ्चेसु भागस्थानेषु क्रमेण चतुस्त्रिद्वये कैकसंज्वलनानामेकै कोदयः सम्भवमेकैकोदयस्थानं स्यात् । तेन तत्र भङ्गाश्चतुस्त्रियैकैको भूत्वा एकादश ॥४३॥ ४ ३ २ १ बं० ५ ४ २ १ ง ง १ अबन्धे सूचमे भं० १२ १२ ४ ३ २ ง भङ्गा मिलिताः ३५ । पूर्वोक्तः सह एतावन्तो भङ्गाः नवशतपञ्चनवतिः ॥६६५॥ ० ง द्विक-उदयमें अर्थात् अनिवृत्तिकरणके पाँच प्रकृतिक और चार प्रकृतिक बन्धस्थान में जहाँ पर तीनों वेदों में से किसी एक वेद और चारों कषायों में से किसी एक कषायका उदय होता है, वहाँ पर तीनों वेदों और चारों कषायों के परस्पर बारह बारह भङ्ग होते हैं । एक प्रकृति के उदय वाले पाँच बन्धस्थानों में अर्थात् चारप्रकृतिक बन्धस्थानके चरम समय में, तीन, दो, एक प्रकृतिक बन्धस्थानमें और किसी भी प्रकृतिका बन्ध नहीं करनेवाले ऐसे अवन्धकस्थानमें क्रम से चार, तीन, दो, एक और एक भक्त होते हैं ||४३|| ६६५। Jain Education International १ इस प्रकार अनिवृत्तिकरणमें दो प्रकृतिके उदयवाले पाँच प्रकृतिक बन्धस्थानमें बारह, चार प्रकृतिक बन्धस्थान में बारह, एक प्रकृतिके उदयवाले चार प्रकृतिक बन्धस्थान में चार, तीन प्रकृतिक बन्धस्थानमें तीन, दो प्रकृतिक बन्धस्थानमें दो और एक प्रकृतिक बन्धस्थानमें एक भङ्ग होता है । तथा किसी भी मोहप्रकृतिका बन्ध नहीं करने वाले सूक्ष्मसाम्परायगुणस्थान में एकमात्र सूक्ष्म संज्वलन लोभका उदय होनेसे एक भङ्ग होता है । इस प्रकार ये सर्व भङ्ग मिल करके (१२+ १२+४+४+२+१+१=३५ ) पैंतीस भङ्ग हो जाते हैं । इन सर्व भङ्गों की अंकसंदृष्टि मूलमें दी है। इन्हें पूर्वोक्त ६६० भङ्गों में मिला देने पर मोहनीय कर्मके उदयस्थानसम्बन्धी सर्व विकल्प ६६५ हो जाते हैं । इन्हीं उदय-विकल्पोंको भाष्यगाथाकार उपसंहार करते हुए प्रकट करते हैं'दसगादि - उदयठाणाणि भणियाणि मोहणीयस्स । पंचूणयं सहस्सं उदयवियप्पा हवंति ते चैव ॥४४॥ 1 एवं सर्वे For Private & Personal Use Only ते कति चेदाह— [ 'दलगादि - उदयठाणाणि' इत्यादि ] मोहनीयस्य दशकादीन्येकपर्यन्तान्युदयप्रकृतिस्थानानि भणितानि । तेषां भङ्गाः पञ्चभिर्न्यूनं सहस्त्रं प्रकुत्युदयस्थानविकल्पा भवन्ति । दशकाद्येकपर्यन्तप्रकृः युदयस्थानानां भङ्गा विकल्पाः प्रकृत्युदयस्थानभेदा नवशतपञ्चनवतिसंख्योपेताः ६६५ भवन्तीत्यर्थः ॥ ४४ ॥ मोहनीय कर्मके दशप्रकृतियोंको आदि लेकर एक प्रकृति पर्यन्त जो दश उदयस्थान कहे गये हैं उनके उदयस्थान-सम्बन्धी सर्व विकल्प पाँच कम एक हजार अर्थात् ६६५ होते हैं ॥४४॥ 1. सं० पञ्चसं० ५, ५३ तथाऽप्रेतनगद्यांशः ( पृ० १५६)। www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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