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________________ पञ्चम अधिकार सप्ततिका मङ्गलाचरण और प्रतिक्षा'णमिऊण जिणिंदाणं वरकेवललद्धि सुक्खपत्ताणं । वोच्छं सत्तरिभंगं उवइडं वीरणाहेण ॥११॥ नत्वाऽहमहतो भक्त्या घातिकर्मविघातिनः। स्वशक्त्या सप्ततिं वक्ष्ये बन्धसत्त्वोदयादिकान् ।। अतीतानागतवर्तमानजिनवरेन्द्रान् नमस्कृत्य वरकेवलज्ञानादिलब्धिसौख्यसम्प्राप्तान् सप्ततिभङ्गान् सप्ततिसङ्ख्योपेतान् भेदान् वये । कथम्भूतान् ? वीरनाथोपदिष्टान् ॥१॥ उत्कृष्ट केवलज्ञानरूप लब्धिको तथा अतीन्द्रिय सुखको प्राप्त हुए जिनेन्द्रदेवोंको नमस्कार करके मैं श्री वीरनाथसे उपदिष्ट सप्ततिका-सम्बन्धी भंगोंको कहूँगा ॥१॥ [मूलगा०१] "सिद्धपदेहि महत्थं बंधोदय-संत-पयडिठाणाणि । वोच्छं सुख संखेवेण णिस्संदं दिट्टिवादादो ॥२॥ बन्धोदयसत्त्वप्रकृतिस्थानानि संक्षेपेणाहं वक्ष्ये; भो भव्य, शृणु । कथम्भूतानि ? सिद्धपदैर्महदर्थम् । आविष्टलिङ्गत्वादेकवचनम् । कथम्भूतम् ? दृष्टिवादाङ्गात् निःस्यन्दं निर्यासं सारभूतं निर्गतं वा । बन्धप्रकृतिस्थानानि उदयप्रकृतिस्थानानि सत्ताप्रकृतिस्थानानि निःसृतं कथयिष्याम्यहम्। प्रसिद्धपदवाक्यः बह्वर्थ महदर्थपंयुक्तानीत्यर्थः ॥२॥ __ मैं संक्षेपसे बन्धप्रकृतिस्थान, उदयप्रकृतिस्थान और सत्त्वप्रकृतिस्थानोंको कहूँगा, सो हे भव्यो, तुम सुनो। यह संक्षेप कथन भी सिद्धपदोंके द्वारा कहा जानेसे महान् अर्थवाला है और दृष्टिवाद नामक बारहवें अङ्गका निष्यन्द अर्थात् निचोड़ या साररूप है ॥२॥ विशेषार्थ-जो पद सर्वज्ञ-भाषित अर्थके प्रतिपादक होते हैं, उन्हें सिद्धपद कहते हैं। प्रकृत ग्रन्थके सर्व ही पद सर्वज्ञ-भाषित महाकर्मप्रकृतिप्राभृतके अर्थका प्रतिपादन करते हैं, इसलिए उन्हें ग्रन्थकारने सिद्धपद कहा है । यह ग्रन्थ यद्यपि संक्षेपसे कहा जायगा, तथापि उसे अल्पार्थक नहीं जानना चाहिए। क्योंकि वह दृष्टिवादका स्वरूप होनेसे महान् अर्थका धारक है। दूसरे इस ग्रन्थमें जिस विषयका वर्णन किया जानेवाला है, वह श्री महावीर भगवानसे उपदिष्ट 1. सं० पञ्चसं० ५.१ 2.५,२।। १. सं. पञ्चसं० ५,१ । परं तत्र चतुर्थचरणे 'बन्धभेदावबुद्धये' इति पाठः। १. सप्ततिका० १. परं तत्र 'दिहिवादादो' स्थाने 'दिहिवायस्स' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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