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________________ २०० पञ्चसंग्रह तीस या उनतीस प्रकृतियोंको बाँधता है। इस प्रकार अवक्तव्यभुजाकार तीन होते हैं, जिनकी संदृष्टि मूलमें दी है। भुजाकार २२ अल्पतर २१ अवक्तव्य ३ ये सर्व मिलकर ४६ अवस्थित बन्धस्थान होते हैं। अब नामकर्मके चारों गतियों में संभव बन्धस्थानोंका निरूपण करते हैं 'इगि पंच तिण्णि पंच य बंधट्ठाणाणि होति णामस्स । णिरयगइ-निरिय-मणुय-देवगईसंजुया हुँति ॥२६१॥ १।५।३।५। अथ तदाधारगतिसम्बन्धेन स्वामित्वं दर्शयति--['इगि पंच तिणि पंच य' इत्यादि ।] नामकर्मणः एकं पञ्च ब्रीणि पञ्च बन्धस्थानानि भवन्ति । कथम्भूतानि ? नरक-तिर्यङ्मनुष्य-देवगतियुक्तानि क्रमेण भवन्ति । तद्यथा-नरकगत्यां एक बन्धस्थानम् १ । तिर्यग्गत्यां पञ्च बन्धस्थानानि ५। मनुष्यगती त्रीणि बन्धस्थानानि ३ । देवगतौ पञ्च बन्धस्थानानि ५ ॥२६॥ नरकगतिसंयुक्त नामकर्मका एक बन्धस्थान है। तिर्यग्गतिसंयुक्त नामकर्मके पाँच बन्धस्थान है। मनुष्यगतिसंयुक्त नामकर्मके तीन बन्धस्थान हैं और देवगतिसंयुक्त नामकर्मके पाँच बन्धस्थान होते हैं ॥२६॥ नरकगतिसंयुक्त १। तिर्यग्गतिसंयुक्त ५। मनुष्यगतिसंयुक्त ३। देवगतिसंयुक्त ५ बन्धस्थान। उक्त बन्धस्थानोंका स्पष्टीकरण अट्ठावीसं णिरए तेवीसं पंचवीस छव्वीसं। उणतीसं तीसं च हि तिरियगई संजुया पंच ॥२६२॥ णि० २८ । ति० २३।२५।२६।२६।३० । तानि कानि चेदाऽऽह--नरकगतौ नरकगतिसहितमष्टाविंशतिकं बन्धस्थानमेकं भवति २८ । तिर्यग्गतौ त्रयोविंशतिक २३ पञ्चविंशतिकं २५ पड़विंशतिकं २६ नवविंशतिकं २६ त्रिंशत्कं ३० चेति तिर्यग्गतिसंयुतानि पञ्च बन्धस्थानानि इति ॥२६२॥ . २३।२५।२६।२६।३० नरकगतिके साथ बँधनेवाला नामकर्मका अट्ठाईस प्रकृतिक एक बन्धस्थान है। तेईस, पच्चीस, छब्बीस, उनतीस और तीसः ये पाँच बन्धस्थान तिर्यग्गतिसंयुक्त बँधते हैं ।।२६२।। नरकगतियुक्त २८ । तिर्यग्गतियुक्त २३।२५।२६।२६।३० । पणवीसं उगुतीसं तीसं चिय तिण्णि होंति मणुयगई । *देवगईए चउरो एक्कत्तीसाइ णिग्गई एय:: ॥२६३।। __ म. २५/२६।३० । दे. ३१३०।२६।२८।। 1. सं० पञ्चसं०४, १३७ । 2.४, १४२ । ब विय । + मूलप्रतिमें इसका उत्तरार्ध इस प्रकार है इगितीसादेगुण अठ्ठावीसेक्कगं च देवेसु ॥ 1, १७६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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