________________
पञ्चसंग्रह
इंदिय पंच वि काया कोहाई दोण्णि एयवेदो य । हस्साइदुयं एवं भयजुयलं एयजोगो य ॥१६॥
१।५।२।१।२।२१ एदे मिलिया १४ । . १५२।१२।२।१ एकीकृताः १४ । एतेषां भङ्गाः ६।१।४।३।२।। एते परस्परं गुणिताः संयतासंयतस्योत्कृष्टभङ्गाः १२६६ ॥११५॥
अथवा देशसंयतगुणस्थानमें इन्द्रिय एक, काय पाँच, क्रोधादि कषाय दो, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भय-युगल और योग एक; ये चौदह बन्ध-प्रत्यय होते हैं ।।१६५।।
इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है--१+५+२+१+२+२+१=१४ ।
एदेसि च भंगा-६।१।४।३।२।६ एए दो वि अण्णोण्णगुणिया उक्कस्सभंगा हवंति संजयासंजयस्स १२६६ । सव्वे वि मिलिया १६०७०४ ।
देससंजदस्स भंगा समत्ता । सर्वेऽपि जघन्यादयो मीलिताः १६०७०४।।
देशसंयतगुणस्थानस्य भङ्गविकल्पा: समाप्ताः । ६।१४।३।२।६ इनका परस्पर गुणा करने पर संयतासंयतके उत्कृष्ट चौदह बन्ध-प्रत्यय
की भङ्ग १२६६ होते हैं। तथा उपयुक्त सर्व भङ्ग मिलकर १६०७०४ होते हैं। जिनका विवरण इस प्रकार हैंआठ बन्ध-प्रत्यय-सम्बन्धी सर्व भङ्ग ६४८०
२५६२० दश " "
४५३६० ग्यारह
४५३६० बारह " "
२७२१६ तेरह " "
६०७२
नौ
चौदह
१२६६
सर्व भङ्गोंका जोड़--
१६०७०४ ___ इस प्रकार देशसंयतके भङ्गोंका विवरण समाप्त हुआ। अब प्रमत्तसंयतके सम्भव बन्ध-प्रत्यय-सम्बन्धी भङ्गोंका निरूपण करते हैं--
'आहारजुयलजोगं पडुच्च पुरिसो हवेज णो इयरा ।
अपसत्थवेदउदया जायइ णाहारलद्धि वयणाओ ॥१६॥ अथ प्रमत्तस्थाने जघन्यपञ्चकायस्कृष्टसप्तान्तप्रत्ययभेदान् गाथाचतुष्केणाऽऽह--['आहारजुयलजोगं' इत्यादि । ] षष्ठे प्रमत्ते आहारकाऽऽहारकमिश्रयोगयुगलं प्रतीत्याऽऽश्रित्य पुंवेदो भवेत् । प्रमत्तसंयतानां पुंवेदोदये सति आहारकद्वयं भवति । इतरस्त्री-नपुंसकवेदोदयात् आहारकलब्धिन जायते इति वचनात्।।१६६॥
प्रमत्तसंयत गुणस्थानमें आहारककाययोगद्विककी अपेक्षा केवल एक पुरुषवेद होता है, इतर दोनों वेद नहीं होते हैं। क्योंकि, 'अप्रशस्तवेदके उदयमें आहारकऋद्धि नहीं उत्पन्न होती है। ऐसा आगमका वचन है ॥१६६॥
प्रमत्तसंयतके सम्भव बन्ध-प्रत्यय-सम्बन्धी भंगोंको लानेके लिए कूट-रचना । इस प्रकार है
1, सं० पञ्चसं० ४, ६३ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org