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________________ पञ्चसंग्रह सासादनगुणस्थान में उदयसे व्युच्छिन्न होनेवाली प्रकृतियाँ[ मूलगा ०२०] 'अण एइंदियजाई वियलिंदियजाइमेव थावरयं । ६२ एए गव पयडीओ सासणसम्मम्हि उदयवोच्छेओ' ॥३१॥ 181 अनन्तानुबन्धीचतुष्क, एकेन्द्रियजाति, तीनों विकलेन्द्रिय जातियाँ, तथा स्थावर; ये नौ प्रकृतियाँ सासादनसम्यक्त्वमें उदयसे व्युच्छिन्न होती हैं ||३१|| सासादनमें उदय व्युच्छिन्न ६ । सम्यग्मिथ्यात्वगुणस्थानमें उदयसे व्युच्छिन्न होनेवाली प्रकृति[मूलगा ०२१] सम्मामिच्छत्तेयं सम्मामिच्छम्हि उदयवोच्छिष्णो । 191 सम्यग्मिथ्यात्वगुणस्थान में एक सम्यग्मिथ्यात्वप्रकृति ही उदयसे व्युच्छिन्न होती है । सम्यग्मिथ्यात्व में उदय - व्युच्छिन्न १ । अविरत सम्यक्त्वगुणस्थानमें उदयसे व्युच्छिन्न होनेवाली प्रकृतियाँ'विदियकसायचउक्कं तह चैव य णिरय- देवाऊ ||३२|| [मूलगा०२२] मणुय- तिरियाणुपुच्ची वेउव्वियछक दुब्भगं चेव । अणादिज्जं च तहा अजसकित्ती अविरयम्हि ||३३|| ॥१७॥ द्वितीयकषायचतुष्क, नरकायु, देवायु, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, तिर्यग्गत्यानुपूर्वी, वैक्रियिकषट्क (वैक्रियिक-शरीर, वैक्रियिक- अंगोपांग, देवगति, देवगत्यानुपूर्वी, नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी ) दुभंग, अनादेय और अयशः कीर्त्ति इस प्रकार सत्तरह प्रकृतियाँ अविरतसम्यक्त्वगुणस्थानमें उदयसे व्युच्छिन्न होती हैं ।।३२-३३।। अविरत सम्यक्त्वमें उदय व्युच्छिन्न १७ । देशविरत गुणस्थानमें उदयसे व्युच्छिन्न होनेवाली प्रकृतियाँ[मूलगा०२३] 'तदियकसायचउक्कं तिरियाऊ तह य चेव तिरियगदी । उज्जोअ णिच्चगोदं विरयाविरयम्हि उदयवुच्छेओ ||३४|| ४ 151 तृतीयकषायचतुष्क, तिर्यगायु, तिर्यग्गति, उद्योत और नीचगोत्र, ये आठ प्रकृतियाँ विरताविरतगुणस्थानमें उदयसे व्युच्छिन्न होती हैं ॥ ३४॥ विरताविरत में उदय व्युच्छिन्न ८ । Jain Education International 1. सं० पंचसं० ३, ४२ । २. ३, ४३ पूर्वार्ध । ३. ३, ४३ उत्तरार्ध, ४४–४५ | 4. ३, ४६ । १. कर्मस्त० गा० २६ । २. कर्मस्त० गा० २७ । ३. कर्मस्त० गा० २८ । ४. कर्मस्त ० गा० २६ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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