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________________ पञ्चसंग्रह मिश्रप्रकृतिका उदय तीसरे मिश्रगुणस्थानमें होता है। सम्यक्त्तप्रकृतिका उदय चौथे अविरतसम्यक्त्व आदि चार गुणस्थानों में होता है। तीर्थङ्करप्रकृतिका उदय तेरहवें सयोगिकेवली गुणस्थानमें और आहारकद्विकका उदय छठे प्रमत्तसंयतगुणस्थानमें होता है ॥२८॥ आनुपूर्वीके उदय-विषयक कुछ विशेष नियम 'णिरयाणुपुव्वि उदओ णासाए जण्ण णिरयउष्पत्ती । सव्वाणुपुव्वि-उदओ ण होइ मिस्से जदो ण मरणं से ॥२६॥ यतः सासादनसम्यग्दृष्टिकी नरकमें उत्पत्ति नहीं होती, अतः सासादनगुणस्थानमें नरकगत्यानुपूर्वीका उदय नहीं होता। सभी आनुपूर्वियोंका उदय मिश्रगुणस्थानमें नहीं होता है; क्योंकि, सम्यग्मिथ्याष्टिका मरण नहीं होता। (अतएव मिथ्यात्व और अविरतसम्यक्त्वगुणस्थानमें चारोंका और सासादनगुणस्थानमें तीन आनुपूर्वियोंका उदय होता है। ) ॥२६॥ *सम्मत्त-सम्मामिच्छत्त-आहारदय-तित्थयरेहिं विणा मिच्छादिदिम्मि णिरयाणुपुग्विविणा सासणे तिरिय-मणुय-देवाणुपुब्बी विणा सम्मामिच्छत्तेण सह मिस्से सव्वाणुपुग्वि-सम्मत्तेण सह २२ ४८ १०४ अविरदे १५ देसे ८७ अप्पमत्ते १८ दस ३५ आहारदुएण सह पमत्ते Um अपुत्वे .. Guru wr.u09m ६ ६६ ६० अणियट्टीए सुहुमाइसु खीणदुचरिमसमए खीणचरिमसमए ५६ ६२ ६३ ८८ ८६ ८२ ३० १२ तित्थयरेण सह सजोगम्मि १२ अजोगम्मि , १०६ १३६ आठों कर्मोकी एक सौ अड़तालीस प्रकृतियोंमेंसे उदयके योग्य प्रकृतियाँ एक सौ बाईस होती हैं, यह बात पहले बतला आये हैं। उनमें से मिथ्यात्वगुणस्थानमें सम्यक्त्वप्रकृति, सम्यग्मिथ्यात्व, आहारकद्विक और तीर्थङ्करप्रकृति; ये पाँच प्रकृतियाँ उदयके योग्य नहीं हैं, अतः उनके विना शेष रही एक सौ सत्तरह प्रकृतियोंका उदय है। सर्व अनुदय-प्रकृतियाँ इकतीस हैं। यहाँ पर मिथ्यात्व आदि पाँच प्रकृतियोंकी उदयसे व्युच्छित्ति होती है। सासादन गुणस्थानमें नरकानुपूर्वीका उदय नहीं होता, अतः वहाँ पर उदय-योग्य प्रकृतियाँ एक सौ ग्यारह हैं, उदयके अयोग्य ग्यारह और अनुदय-प्रकृतियाँ सैंतीस हैं। यहाँ पर अनन्तानुबन्धीचतुष्क आदि नौ प्रकृतियाँ उदयसे व्युच्छिन्न होती हैं। मिश्रगुणस्थानमें तिर्यगानुपूर्वी, मनुष्यानुपूर्वी और देवानु 1. सं० पञ्चसं० ३, ३८ । * २, 'एताः सम्यक्त्व' इत्यादिगद्यभागः पृ० (५६) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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