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________________ ५२ पञ्चसंग्रह गुणस्थानोंमें मूल प्रकृतियोंके बन्धका निरूपण 'सत्तट्ठछकठाणा मिस्सापुव्वाणियट्टिणो सत्त । छह सुहुमे तिण्णेगं बंधंति अबंधओजोओ ॥४॥ आउस्स बंधकाले अट्ठ कम्माणि, सेसकाले सत्त । TEEEE ||:: मोहाउगेहिं विणा ६ । वेयणीयं ।।१।१।।+ मिश्रगुणस्थानको छोड़कर अप्रमत्तगुणस्थान तकके छह गुणस्थानवी जीव आयुकर्मके विना सात कोको, अथवा आयकर्म-सहित आठ कर्मोको बाँधते हैं। मिश्र, अप और अनिवृत्तिकरण गुणस्थानवाले जीव आयुकर्मके विना शेष सात कोको बाँधते हैं। सूक्ष्मसाम्परायगुणस्थानवी जीव आयु और मोहनीय कर्मके विना छह कोको बाँधते हैं। ग्यारहवें, बारहवें और तेरहवें ये तीन गुणस्थानवी जीव केवल एक वेदनीय कर्मको ही बाँधते हैं। अयोगिकेवली जिन किसी भी कर्मका बन्ध नहीं करते हैं ॥४॥ मिश्रके विना आदिके छह गुणस्थानोंमें आयुकर्मके बंधकालमें आठ कर्म बंधते हैं और शेष कालमें सात कर्म बंधते हैं। आठवें और नवें गुणस्थानमें आयुके विना सात कर्म बँधते हैं। दशवें गुणस्थानमें मोह और आयु कर्मके विना छह कर्म बँधते हैं । शेषमें एक वेदनीय कर्म बँधता है । चौदहवें गुणस्थानमें कोई कर्म नहीं बँधता । इनकी संदृष्टि इस प्रकार है| मि० सा० मि० अ० सू० । उ० । | स० अ० १० १ १ १ ० | ८ | ८ ० ८ ८ ८ ८ ० ० ० । गुणस्थानोंमें मूलप्रकृतियोंके उदयका निरूपण 'सुहुमं ति x अट्ट वि कम्मा खीणुवसंता य सत्त मोहूणा । घाइचउक्केणूणा वेयंति य केवली वि चत्तारि ॥॥ ८।८।८।८।८।८ । ८ । ८।८।८। ७ । ७ । ४ । ४ । उदयः ।* सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान तकके जीव आठों ही कर्मोंका वेदन करते हैं। उपशान्तकषाय और क्षीणकषाय गुणस्थानवी जीव मोहकर्मके विना सात कर्मोंका वेदन करते हैं। तेरहवें और चौदहवें गुणस्थानवर्ती केवली भगवान् घातिचतुष्कके विना चार कर्मोंका वेदन करते हैं ॥५॥ गुणस्थानोंमें मूल कर्मोके उदयकी संदृष्टि इस प्रकार है-- प्र० अ० अ० अ० 1. सं० पञ्चसं० ३, ११-१२ । 2. ३, १३ । + द 'इति कर्मणां बन्धः कथितः' इत्यधिकः पाठः। कथितः' ईदृक् पाठः । -द तिवि। द 'इति कर्मणां उदयः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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