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आपका जीवन प्रारम्भ से ही संस्कारित था। बाल्यकाल में मिले हुए सुसंस्कारों का विकास होता रहा। आप प्रायः साधु-संन्यासियों के संपर्क में आते रहते थे । इसका ही यह मधुर परिणाम है कि आगे चलकर आप एक महान् साधक बने और अपने जीवन का सही दिशा में विकास किया। आपके जीवन में अनेक गुण विद्यमान थे। परन्तु सरलता, स्नेहशीलता, दयालुता एवं न्यायप्रियता आपके जीवन के कण-कण में समा 'बुकी थी। आपके जीवन की यह विशेषता थी कि आप कभी किसी के दुःख को देख नहीं सकते थे। आप सदा-सर्वदा दूसरे के दुःख को दूर करने के लिए प्रयत्नशील रहते थे। सेवा-निष्ठ जीवन
वि० सं० १९७४ में प्लेग की भयंकर बीमारी फैल गई । जन-मानस आतंक की उत्ताल तरंगों से आन्दोलित एवं विचलित हो उठा · देखते ही देखते सबके स्वजनपरिजन काल के गाल में समाने लगे और लोग अपने परिवार के साथियों का मोह त्यागकर अपने प्राण बचाने का प्रयत्न करने लगे। गाँव खाली होने लगा, और घरों में लाशों के ढेर लगने लगे। उन्हें श्मशान भूमि तक ले जाकर दाह-संस्कार करने वाले मिलने कठिन हो रहे थे। चारों तरफ त्राहि-त्राहि मच गई । मेरे पिताजी के परिवार के सदस्य भी महामारी की चपेट में आ गए थे और ८ दिन में परिवार के २३ सदस्य सदा के लिए इस लोक से विदा हो चुके थे। घर में सन्नाटा छाया हुआ था। चारों तरफ कुहराम मच रहा था। ऐसे विकट एवं दुःखद समय में भी आपके धैर्य का बाँध नहीं टा। आप दिन-रात जन-सेवा में लगे रहे। लोगों के लिए दवा की व्यवस्था करना और जिस परिवार में मृत व्यक्ति को कोई कंधा देने वाला नहीं रहता, उस लाश को उठाकर उसे श्मशान में ले जाकर दाह संस्कार कर देना। इस तरह आपने हृदय से बीमारों की सेवा की और साहस के साथ महामारी का सामना किया।
___ प्लेग के कारण बहुत से लोग मर गये और बहुत से लोग अपने जीवन को बचाने के लिए गाँव छोड़कर जंगलों में चले गये और वहीं झोंपड़ियाँ बनाकर रहने लगे । परन्तु परिवार में सदस्यों की कमी हो जाने तथा बीमारी के कारण शक्ति क्षीण हो जाने से उनमें खेती करने का सामर्थ्य कम रह गया और अर्थाभाव भी उनके सामने मुंह फाड़े खड़ा था । अन्न की समस्या विकट हो रही थी। लोग वृक्षों की छालें पीसकर उसकी रोटियाँ बनाकर खाते या झाड़ियों के बेर खाकर ही सन्तोष करते थे । अन्त में विवश होकर लोग अपने राजा के पास पहुँचे और उनसे सहायता माँगी। उस समय मेरे पिताजी राज-दरबार में कामदार थे। उन्होंने भी जनता का साथ दिया और राजा से अन्न संकट को दूर करने का प्रयत्न करने की प्रार्थना की । किन्तु जनता की प्रार्थना राजा के कर्ण-कुहरों से टकराकर अनन्त आकाश में विलीन हो गई । दुर्भाग्य से वह राजा के हृदय में नहीं पहुंच पाई । उस करुण दृश्य को देखकर
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