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२६८ | योग-विंशिका
आसन का अर्थ बैठना है । सब आसन बैठकर नहीं किये जाते । कुछ आसन बैठकर, कुछ सोकर तथा कुछ खड़े होकर किये जाते हैं । देह की विभिन्न स्थितियों में अवस्थित होना स्थान शब्द से अधिक स्पष्ट होता है ।
ऊर्ण-- योगाभ्यास के सन्दर्भ में प्रत्येक क्रिया के संक्षिप्त शब्द- समवाय का उच्चारण किया जाता है, जाता है ।
अर्थ - शब्द- समवाय-गर्भित अर्थ के अवबोध का व्यवसाय - प्रयत्न यहाँ अर्थ शब्द से अभिहित हुआ है ।
साथ जो सूत्र - उसे ऊर्णं कहा
आलम्बन - ध्यान में बाह्य प्रतीक आदि का आधार आलम्बन है । अनालम्बन- - ध्यान में रूपात्मक पदार्थों का सहारा न लेना अनालम्बन कहा गया है । यह निर्विकल्प, चिन्मात्र अथवा समाधिरूप है ।
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इस विवेचन से स्पष्ट है, क्रमशः स्थान- आसन तथा ऊणं - सूत्रोच्चारण में संस्थित एवं क्रियाशील होने के कारण - क्रिया-प्रधानता से इन दोनों की संज्ञा क्रिया योग है ।
अर्थ, आलम्बन और अनालम्बन का सम्बन्ध ज्ञान या चिन्तन से है, इस कारण इनका ज्ञानयोग में समावेश किया गया है ।
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[ ३ ]
नियमेणेसो चरित्तिणो होइ । बीमित्तं इत्त, च्चिय केइ इच्छंति ॥
देसे सव्वे यतहा
इयरस्स
यह पाँच प्रकार का योग निश्चय-दृष्टि से उसी के सधता है, जो चारित्र - मोहनीय के क्षयोपशम से अंशतः या सम्पूर्णतः चारित्र सम्पन्न होता है, जो वैसा नहीं होता, उसके यह बीजमात्र केवल योग-बीज रूप होता है । व्यवहार- दृष्टि से यह कुछ विद्वानों द्वारा योग भी कहा जाता है ।
अभिप्राय यह है कि यह वस्तुतः योगावस्था प्राप्त करने में कारणभूत होता है ।
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