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१५४ | योगबिन्दु है। उसके एक कोडाकोड़ सागर' की स्थिति के भी मोहनीय कर्म का बन्ध नहीं होता।
___ सत्तर करोड़ सागर को एक करोड़ सागर से गुणा करने से जो गुणनफल आता है, वह सत्तर कोडाकोड़ सागर होता है । उसी प्रकार एक करोड़ सागर को एक करोड़ सागर से गुणा करने पर जो गुणनफल आता है, वह एक कोड़ाकोड़ सागर होता है।
[ २६६ ] तदत्र परिणामस्य भेदकत्वं नियोगतः । बाह्यं त्वदनुष्ठान प्रायस्तुल्यं द्वयोरपि
यद्यपि बाह्य दृष्टि से दोनों प्रकार के मिथ्यादृष्टि पुरुषों का असत् अनुष्ठान-मिथ्या आचरण प्रायः समान होता है किन्तु दोनों के परिणाम भिन्न-भिन्न होते हैं अत: उनमें भेद माना जाता है। सम्यक्दृष्टि और बोधिसत्व--
[ २७० ] अयमस्यामवस्थायां बोधिसत्त्वोऽभिधीयते ।
अन्यस्तल्लक्षणं यस्मात् सर्वमस्योपपद्यते ॥
अन्तर्विकास की दृष्टि से इस अवस्था तक–सम्यक्दृष्टि तक पहुंचा हुआ पुरुष बौद्ध परंपरा में बोधिसत्त्व कहा जाता है । सम्यकदृष्टि पुरुष में वह सब घटित है, जो बोधिसत्त्व के सम्बन्ध में वर्णित है।
[ २७१ ] कायपातिन एवेह बोधिसत्त्वाः परोदितम् । । न चित्तपातिनस्तावदेतदत्रापि युक्तिमत् ॥
बौद्ध आचार्यों ने बताया है कि बोधिसत्त्व कायपाती ही होते हैं, चित्तपाती नहीं होते । अर्थात् कर्तव्य कर्म करते समय उनकी देह से हिंसा आदि अकुशल या अशुभ कर्म हो जाते हैं किन्तु चित्त से नहीं होते । उनका चित्त अपनी पवित्रता के कारण वैसे कार्यों में व्याप्त नहीं होता।
सम्यक्दृष्टि के साथ भी यह स्थिति घटित होती है। १. इस सन्दर्भ में इसी ग्रन्थ के ३५२वें श्लोक का विवेचन दृष्टव्य है ।
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