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योग का माहात्म्य | ९७ तिशय — अनेक जन्मों के अत्यधिक अभ्यास के कारण नवजात शिशु में यह प्रवृत्ति होती है। मां के स्तनों से दूध पीते रहने के प्रसंग जन्म-जन्मान्तर में न जाने कितनी बार उसके घटित हुए हैं । उसी चिर अभ्यास- जनित संसार-स्मृति का परिणाम माँ के स्तनों का दूध पीने के उपक्रम के रूप में परिलक्षित होता है ।
[ ६२ ]
स्वप्ने वृत्तिस्तथाभ्यासाद् विशिष्टस्मृतिवर्जिता । जाग्रतोऽपि क्वचित् सिद्धा सूक्ष्मबुद्धया निरूप्यताम् ॥
पूर्वतन अभ्यासवश स्वप्न में जो अनुभव किया जाता है, कई बार ऐसा होता है, कुछ समय बाद स्मरण नहीं रहता । इतना ही नहीं, कभीकभी जागरित अवस्था में भी मन में उठे विचार बाद में याद नहीं रह पाते। यह सब स्मृति - दौर्बल्य के परिणाम हैं । इस सम्बन्ध में सूक्ष्म बुद्धि से विचार करें |
[ ६३ ]
श्रूयन्ते च महात्मान एवं दृश्यन्त इत्यपि । क्वचित् संवादिनस्तस्मादात्मादेर्हन्त ! निश्चयः 11
ऐसे महापुरुष सुने जाते हैं, कहीं-कहीं देखे भी जाते हैं, जिनसे जातिस्मरण ज्ञान की प्रामाणिकता सिद्ध होती है । अर्थात् ऐसे योगसिद्ध महापुरुष भी यहाँ हैं, जिन्हें जाति-स्मरण ज्ञान प्राप्त होता है । इस आधार पर निश्चित रूप से आत्मा आदि का अस्तित्व सिद्ध होता है ।
[ ६४ ]
एवं च तत्त्वसंसिद्ध योंग एव अहो यन्निश्चितवेयं नान्यतस्त्वोदृशी
निबन्धनम् । क्वचित् ॥
इस प्रकार योग ही आत्मा आदि तत्त्वों की सिद्धि का कारण है । पदार्थों के स्वरूप आदि की निश्चित प्रतीति या अनुभूति योग से ही साध्य है, अन्य से कहीं नहीं ।
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