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________________ ४ ] ॥ ॐ श्रीं अर्हते नमः ॥ -: श्री मुहूर्तराज प्रस्तावना : यस्य प्रतापतपनो भुवि भाति शश्वद्, भव्यान्धकारपटलं विदधाति दूरम् । स्तुत्योऽस्ति कोविदवरैर्विविधोपमाभी Jain Education International राजेन्द्र सूरितरणेः स्मरणं करोमि ॥ १ ॥ विफलान्यान्यशास्त्राणि विवादस्तत्र केवलम् । [ मुहूर्तराज सफलं ज्यौतिषं शास्त्रम् चन्द्रार्कौ यत्र साक्षिणौ ॥ विचक्षण गण ! इस संसार में महामहिम शालि श्री गणधर - बहुश्रुत - गीतार्थ - आचार्य - मुनीश्वर आदि बड़े-बड़े- प्रख्यात विद्वद्वरों ने सत्तत्वों के प्रदर्शक कई एक ज्योतिर्ग्रन्थरत्न बनाए हैं, लेकिन समयवशतः बुद्धि, बल, आयुष्य आदि की न्यूनता से स्वपरोपकारार्थ विस्तृत से संक्षिप्त और संक्षिप्त से विस्तृत व सुगम से भी सुगम करना पाश्चात्य (परवर्ती) विद्वानों का एक मुख्य कर्तव्य है। वैसे अनेकानेक ज्योतिर्ग्रन्थ स्वपरधर्म में विद्यमान हैं, तथापि उनमें से प्रायः किसी एक ही में स्वमनोऽमिलषित कुल तत्त्व नहीं मिलते इस विषय में उदाहरण देने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उक्त कथन ही उदाहरण रूप है। इसलिए संवत् १९७६ वि. वागरा नगर (मारवाड़) के चौमासे में श्री सौधर्म बृहत्तपागच्छीय जैन श्वेताम्बाराचार्य श्री १००८ श्रीमद्विजयराजेन्द्र सूरीश्वरजी महाराज के पादारविन्द चञ्चरीक मुनिश्री गुलाब विजयजी द्वारा गुरु कृपा से स्वबुद्धयनुसार ३१ ज्योतिशास्त्रों के अन्दर से स्व-पर- मुहूर्त विषय बोधार्थ यह मुहुर्तराज नामक ग्रन्थ प्रायः सविस्तार संवत्सरादि क्रम से संगृहीत है। यह शुभाशुभ, लग्नशुद्धि, आवश्यक मुहूर्त, वास्तु, प्रवेश ( प्रतिष्ठा ) इन ५ प्रकरणों से सुशोभित है। यहां पर प्रस्तावना बढ़ जाने के भय से इनका विशेष खुलासा करना योग्य नहीं समझा गया। दूसरा यह कि बुद्धिमान स्वयमेव प्रकरणों के नाम व वाँचन (वाचन) से ही खुलासा समझ लेंगे । अब नम्र निवेदन यही है कि यदि इस ग्रन्थ में किसी तरह की अशुद्धि या असम्बद्ध संग्रह किये हों तो उसे सुज्ञजन कृपया शुद्धकर वाँचने का परिश्रम लेवें और संग्रह कर्ता को सूचित करें ताकि उसका द्वितीयावृत्ति में यथोचित सुधार किया जायेगा । किमधिकं विज्ञेषु ॥ ( मूल प्रति से उद्धृत) सूचना :- यह प्रस्तावना मूल संकलनकर्त्ता की है। उपाध्यायश्रीमद् श्री गुलाबविजयः श्री बागरानगरे For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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