SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुहूर्तराज ] [३ दक्षिणायन में भी क्रूर प्रकृतिक देवों की स्थापना अथवा क्रूर कार्य एवं लौकिक व्यवहार से कुछ सत्कार्य भी किये जा सकते हैं। यथा वैखान संहिता में मातृ- भैरव- वाराह- नारसिंह- त्रिविक्रमाः । महिषासुरहन्त्री च स्थाप्या वै दक्षिणायने ॥४॥ अन्वय - मातृ-भैरव-वाराह-नारसिंह-त्रिविक्रमा तथा च महिषासुरहन्त्री एता देवता: वै दक्षिणायने स्थाप्याः भवन्ति। ___अर्थ - श्री अम्बिका, भैरव, श्री वाराह नृसिंह त्रिविक्रम एवं महिषासुर मर्दिनी इन देवताओं को विशेषकर दक्षिणायन के समय में ही स्थापित करना चाहिये। ऋतुज्ञान-मुहूर्त प्रकाश में मृगादिराशिद्वय भानुभोगाद् रसर्तवः स्युः शिशिरो वसन्तः । ग्रीष्पश्च वर्षा च शरच्च तद्वत् हेमन्तनामा कथितश्च षष्ठः ॥५॥ अन्वय - मृगादिराशिद्वयभानुभोगाद् शिशिरः, वसन्तः, ग्रीष्मः, वर्षा, शरत् च तद्वत् षष्ठ: हेमन्त: कथितः इत्थं रसर्तवः (षड् ऋतव:) स्युः। अर्थ - मकर से लेकर दो-दो राशियों तक भानु (सूर्य) के होने पर क्रमश: शिशिर, वसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, शरद् एवं हेमन्त ये छ: ऋतुएँ बनती हैं, अर्थात् भानु के मकर एवं कुंभ राशि में होने पर शिशिर, मीन और मेष में होने पर वसन्त, वृष और मिथुन राशि में होने पर ग्रीष्म, कर्क एवं सिंह में होने पर वर्षा, कन्या एवं तुला राशि में होने पर शरद् और वृश्चिक एवं धनु में होने पर हेमन्त ऋतु होती है। क्षयाधिकमास ज्ञान-ज्योतिस्सार के मत से असंक्रान्तिमासोऽधिमासः स्फुटः स्यात्, द्विसंक्रान्तिमासो क्षयारव्यः कदाचित् । क्षयः कार्तिकादित्रये नान्यतः स्यात्, तदा वर्षमध्येऽधिमासद्वयं च ॥६॥ अन्वय - असंक्रान्तिमासः स्फुट: अधिकमासः स्यात्, कदाचित द्विसंक्रान्तिमासः क्षयाख्य (क्षयनामा) च। क्षय: कार्तिकादित्रये न अन्यतः (अन्यः) तदा (तस्मिन् वर्षे) वर्षमध्ये अधिमासद्वयम् स्यात्। अर्थ - जिस मास की शुक्ल प्रतिपदा से अमावस्या तक यदि सूर्य संक्रान्ति नहीं बदलती हो उसे अधिक मास कहते हैं एवं जिस मास की शुक्ल प्रतिपदा से अमावस्या तक यदि दो राशियों पर सूर्य का संक्रमण हो जाए तो उस मास को क्षयमास कहते हैं जो कि कभी-कभी होता है। क्षयमास कार्तिक मार्गशीर्ष एवं पौष इन तीनों में से ही कोई एक होता है, किन्तु अधिकमास तो बारहों महीनों में से कोई भी हो सकता है जिस वर्ष में क्षयमास हो तो उस वर्ष में अधिकमास दो होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy