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________________ विद्यालय, डॉ. रेवा प्रस साहित्य विभागाध्यक्ष, काशी हिन विश्वविद्यालय, डॉ. देवस्वरूप मिश्र-दर्शन संकायाध्यक्ष, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, डॉ. रामप्रसाद त्रिपाठी- भूतपूर्व व्याकरण विभागाध्यक्ष, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, पं. चल्लालक्ष्मण शास्त्री आदि प्रमुख थे। धन्यवाद पं. बंदिकृष्णा अधिवेशन में उपशि Monday: November 6, 198437 षा को विनो करने के लिए विद्वानों के अतिरिक्त हिन्दू अधिवेशन में धार (मध्य प्रदश) सपाका बी सभी संतों मुनियों को आगे आना चाहिए। विजय ने कहा कि हिन्दू संस्कृति एवं शास्त्रों की र४ विश्वविद्या कहा कि आज यहां अनेक धर्म एवं संस्कृतियां / | पर बल देते हुए कहा कि इसके लिए काशी के वि सम्पूर्णान ए। आपने कहा कि जब-जब द्वंद्व के कारण समाप आघात हुआ है, तब-तब तस्कृत: एवं संस्कृति ला और संस्कृति की प्रमुख बारे मुनियों, सर घी में सर्वश्री मे अन्य विद्वानों की। पति त्रिपाठी, - देवस्वरूप मिश्र, त चेल्ला लक्ष्मप LawR amkellame आगे आना : किये / स्वागत भा वाराणसी मंगलवार ७नवम्बर AUTOकी चर्चा करते हुए ने किया। कार्यक्रमका तब धर्म एवं निगा हिन्दू संस्कृति की रक्षा के लिये ने किया। and pano protect the माशी के विद्वान आगे आयें | ORIनव.। अगस्त्य कुण्ड स्थित शारदा भवन Vif को ही है पण्डित सभा के विशेष वाराणसी (इलाहबाद) 5 नवम्बर 191 M. लिए अनेक 4 धारे मुनिश्री जयप्रभ के रक्षा पर बल देते %AD विद्वानों को आगे MBER दू धर्म एवं संस्कृति पासी। काशी पणी के विद्वानों ने रदा भवन में रा लेदान किया है। धिवेशन आयोजि स्त्रों की चर्चा करते गोतिष शास्त्रवेत्ता मुनि निवार को -धर्म एवं अभिनंदन एवं उन्हें मा NORTHERN INDIA दैनिक जागर heir exhout a ALLAHABAD 1 NOVEMBER 1 TO protect ndu culture Sy Our Staff Reporter VARANASI, Nov 5 - The Intellectuals 1970 and Pandits of Kashi should come fra ward to protect the Hindu culture Pn Shastras, as the craze of be mber of other स्वतंत्र भारत a Vija वाराणसी, 10 सितम्बर 1989 (2) काशी पण्डित Te pundits to protect * Hindu religira _varan KCAR Varans *6.Note "ed upon 31 संस्कत बिना भारतीय संस्कृति की रक्षा नहीं भावाराणसी 9 सितम्बर। अगस्न्य कुण्ड स्थित शारदा भवन में ६१वें श्री गणेशोत्सव के अवसर पर आयोजित मटविद्वत गोष्ठी में विद्वानों ने कहा कि देववाणी संस्कृत ही। गरतीय संस्कृति के मूल में है और इसके बिना रक्षा कति एवं262 3 दिनांक 5 नवंबर 1989 रविवार को काशी पण्डित सभा के विशेष वार पवार 8 अधिवेशन के शुभावसारस्पति जैनाच दी। स्वतभारत हि पान विद्वान की जड़ इतका विशिष्ठ वक्ता भारतीय संस्कृति एवं, जि विद्वान मुनिश्री जय प्रभ विजय गति की जड़ इतनी मजब यहां दतुर्मास्य व्रत कर की भी चर्चा की और परम्पराओं को बसहत्तपोगच्ची नि आमंत्रित हस्तव, प्राचार्य, - कैलाशपति त्रिपाठी, साहित्य संस्कृति एवं शास्त्रों कार / मुनिश्री जयप्रभ मोबबहत्तपोगच्छीय साहित्य शिरोमणि व्याख्यान वाचस्पति जैनाच वेजय यतीन्द्र सूरीश्वरजी महाराज के शिष्यरत्न ज्यो हद मुनिप्रवर श्री जयप्रभ विजयजी श्रमण को अभिनन्दन तेषा/"की मानद उपाधि प्रदान समारोह में यादर आमंत्रित हैं। मंगलवार 7, नवम्बर 1989 जनवाता/ बाराणसी कार्तिक शुक्ल पक्ष 8 संवत् 2049 बि. सोमवार र सम्बर 1989 हिन्दू संस्कृति की रक्षा हेतु काशी के विद्वानों के बारा वाराणसी, 5 नवम्बर। मूनिश्री जयप्रभ बार सस्कृति एवं शास्त्रों की रक्षा पर बल देते, इसके लिए कशी के विद्वानों को आगे आ अगस्त्य कुण्ड स्थित शारदा भवन में हुए काशी पण्डित सभा के विशेष अधिवेशन प्रदेश) से पधारे श्री जयप्रभ विजय ने कहा कि हुआ है कि जब-जब हिन्दधर्म और संस्कृति पा हआ है, तब-तब काशी के विद्वानों ने भारतीयो। संस्कृति की रक्षा हेतु कुर्बानी दी है। गोष्ठी में आये अन्य विद्वानों ने कहा कि शास्त्री भवन म रक्षा के लिए तथा संस्कृत भाषा को ओर समन्नत बनाने शेष के लिए विद्वानों के अतिरिक्त हिन्दु धर्मावलम्बी सभी सन्त एवं मुनियों का (को आगे) 2 लिए पिक प्रसारित / राणसी, गोरखपुर, इलाहाबाद, कानपुर,लखनऊ, पना,रांची, जमशेदपुर तथा धनबाद से प्रकाशित हिन्दू संस्कृति की रक्षा के लिए काशी के विद्वानों का आह्वान - वाराणसी, 6 नवम्बर। अगस्त्य कुण्ड स्थित शारदा भवन में रविवार को सम्पन्न हुए काशी पण्डित सभा के. न शेष अधिवेशन सभा में धार (मध्य प्रदेश) से पान पी जय प्रभु विजय ने हिन्दू संस्कृति एवं शास्त्र क देते हए कहा कि इसके लिए काशी सभा के संस्कृति की रक्षा के लिए सेमी के विद्वानों का आह्वान व शा"ब हिन्दू धर्म एवं संस्कृति पर आयात हआ है / जाकारी के विद्वानों ने धर्म संस्कृति की
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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