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मुहूर्तराज ]
[४२१ १६. वोसिवेस्युभयचरी-योग, १७. चन्द्रयोग, १८. ग्रहप्रवज्यायोग, १९. देवनक्षत्रफल, २०. चन्द्रराशिफल, २१. सूर्यादिराशिफल, २२. रश्मिचिन्ता, २३. दृष्टयादिफल, २४, भावफल, २५. आश्रयाध्याय, २६. कारक, २७. अनिष्ट, २८. स्त्रीजातक, २९. निर्याण, ३०. द्रेष्काणस्वरूप, ३१. प्रश्नजातक ।
यह ग्रंथ छपा नहीं है। हायनसुन्दर :
आचार्य पद्मसुन्दरसूरि ने 'हायनसुन्दर' नामक ज्योतिषविषयक ग्रंथ की रचना की है। विवाह पटल :
_ 'विवाह पटल' नाम के एक से अधिक ग्रंथ है। अजैन ग्रंथों में शांर्गधर ने शक सं. १४०० (वि.सं. १५३५) में और पीताम्बर ने शक सं. १४४४ वि. सं. १५७९ में इनकी रचना की है। जैन कृतियों में 'विवाह पटल' के कर्ता अभयकुशल या उभयकुशल का उल्लेख मिलता है। इसकी जो हस्तलिखित प्रति मिली है, उसमें १३० पद्य हैं, बीच-बीच में, पाकृत गाथाएँ उद्धृत की गई हैं। इसमें निम्नोक्त विषयों की चर्चा है:
योनि नाड़ी गणश्चैव स्वामिमित्रेस्तथैव च ।
जुंजा प्रीतिश्च वर्णश्च लीहा सप्तविद्यास्मृता ॥ नक्षत्र, नाड़ीवेध यन्त्र, राशि स्वामी, विवाह नक्षत्र, चन्द्र सूर्य स्पष्टीकरण, एकार्गल, गोधूदिका फल, आदि विषयों का विवेचन है।
यह ग्रन्थ प्रकाशित नहीं हुआ है। करणराजः
रूद्रीपल्लीगच्छीयजिनसुन्दरसूरि के शिष्य मुनिसुन्दर ने वि. सं. १६५५ में 'करणराज' नामक ग्रंथ की रचना की है।
यह ग्रंथ दस अध्यायों जिनको कर्ता ने 'व्यय' नाम उल्लिखित किया है, में विभाजित है। १. ग्रह मध्यम साधन, २. ग्रह स्पष्टीकरण, ३. प्रश्न साधक, ४. चन्द्रग्रहण साधन, ५. सूर्यं साधक, ६. त्रुटित होने से विषय ज्ञात नहीं हो सका, ७. उदयास्त, ८. ग्रह युद्ध नक्षत्र समागम, ९. पाताव्यय, १०. निमिशक (?) अन्त में प्रशस्ति है।
१. २. ३.
इसकी ४१ पत्रों की प्रति अहमदाबाद के लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कति विद्या मन्दिर के संग्रह में है। इसकी प्रति बिकानेर स्थित अनूप संस्कृत लायबेरी के संग्रह में है। इसकी ७ पत्रों की अपूर्ण प्रति संस्कृत लायब्रेरी बीकानेर में है।
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