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________________ ४२० ] [ मुहूर्तराज गण सारणी : ___ 'गण सारणी' नामक ज्योतिष विषयक ग्रंथ की रचना पार्श्वचन्द्र गच्छीय जगच्चन्द्र के शिष्य लक्ष्मीचन्द्र ने वि. सं. १७६० में की है। - इस ग्रंथ में तिथि, ध्रुवांक, अंतरांकी, तिथिकेन्द्र चक्र, नक्षत्र ध्रुवांक, नक्षत्र चक्र, योगकेन्द्र चक्र, तिथि सारणी, तिथिगण खेमा, तिथि केन्द्र घटी, अंशफल, नक्षत्रफल सारणी, नक्षत्रकेन्द्र फल, योगगण कोष्टक आदि विषय है। यह ग्रंथ अप्रकाशित है। लालचन्द्री पद्धति : ___मुनि कल्याण विधान के शिष्य लब्धिचन्द्र ने 'लालचन्द्री पद्धति' नामक ग्रंथ वि. सं. १७५१ में रचा ___ इस ग्रंथ के जातक के अनेक विषय हैं। कई सारणियाँ दी हैं। अनेक ग्रंथों के उद्धरणों और प्रमाणों से परिपूर्ण है। टिप्पनक विधि : ___ मतिविशालगणि ने 'टिप्पनक विधि' नामक ग्रंथ प्राकृत में लिखा है। इसका रचना समय ज्ञात नहीं इस ग्रंथ में पंचांगतिथिकर्षण, संक्रांतिकर्षण, नवग्रहकर्षण, वक्रातिचार, सरलगतिकर्षण, पंचाग्रहास्तमितोदित कथन, भद्राकर्षण अधिकमासकर्षण तिथि, नक्षत्र, योग वर्द्धन, घटनकर्षण, दिनमानकर्षण आदि १३ विषयों का विशद् वर्णन है। होरामकरन्द : ___ आचार्य गुणाकरसूरि ने 'होरामकरन्द' नामक ग्रंथ की रचना की है। रचना समय ज्ञात नहीं है, परन्तु १५ वीं शताब्दी होगा, ऐसा अनुमान है। होरा अर्थात् राशि का द्वितीयांश। इस ग्रंथ में ३१ अध्याय हैं:-१. राशि प्रभेद, २. ग्रहस्वरूपबल निरूपण, ३. वियोनिजन्म, ४. निषेक, ५. जन्मविधि, ६. रिष्ट, ७. रिष्टभंग, ८. सर्वहारिष्टभंग, ९. आयुर्दा, १०. दशम अध्याय, (?) ११. अन्तर्दशा, १२. अष्टकवर्ग, १३. कर्माजीव, १४. राजयोग, १५. नाभसयोग। तद्विनेया: पाठका: श्रीजगच्चन्द्राः सुकीर्तयः ॥ शिष्येण लक्ष्मीचन्द्रेण कृतेय सारणी शुभा ॥ संवत् खवश्वेन्दु (१७३०) मिते बहुले पूर्णिमातिथौ । कृता परोपकृत्यर्थ शोधनीया च धीधनै ॥ इसकी १४८ पत्रों की १८ वीं सदी में लिखी गई प्रति अहमदाबाद के लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्या मन्दिर में इसके १ पत्र की वि. सं. १६९४ में लिखी गई प्रति अहमदाबाद के लालभाई दलपतभाई भाीय संस्कृति विद्या मन्दिर के संग्रह में है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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