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मुहूर्तराज ]
[४११ ज्योतिष प्रकाश :
कासहाद्गच्छीय नरचन्द्र मुनि ने 'ज्योतिष प्रकाश' नामक ग्रन्थ की रचना करीब वि. सं. १३२५ में की है। फलित ज्योतिष के मुहूर्त और संहिता का यह सुन्दर ग्रन्थ है। इसके दूसरे विभाग में जन्म कुण्डली के फलों का अत्यन्त सरलता से विचार किया गया है। फलित ज्योतिष का आवश्यक ज्ञान इस ग्रन्थ द्वारा प्राप्त हो सकता है। चतुर्विशिकोद्धार :
कासहाद्गच्छीय नरचन्द्र उपाध्याय ने 'चतुर्विशिकोद्धार' नामक ज्योतिष ग्रन्थ की रचना करीब वि. सं. १३२५ में की है। प्रथम श्लोक में ही कर्ता ने ग्रन्थ का उद्देश्य इस प्रकार बताया है।
श्रीवीराय जिनेशाय नत्वातिशयशालिने ।
प्रश्न लग्न प्रकारोअयं संक्षेपात् क्रियते मया । इस ग्रन्थ में प्रश्न लग्न का प्रकार संक्षेप में बताया गया है। ग्रन्थ में मात्र १७ श्लोक हैं, जिनमें होराद्यानयन, सवलग्नगहबल, प्रश्नयोग पतितादिज्ञान, जयाजय पृच्छा आदि विषयों की चर्चा है। ग्रन्थ के आरम्भ में ही ज्योतिष सम्बन्धी महत्वपूर्ण गणित बताया है। यह ग्रन्थ अत्यन्त गूढ़ और रहस्यपूर्ण है। निम्न श्लोक में कर्ता ने अत्यन्त कुशलता से दिनमान सिद्ध करने की रीति बताई है।
पंचवेदयामगुण्ये दरविमुक्तदिनान्विते ।
त्रिंशदभुक्ते स्थितं यत तत् लग्नं सूर्योदयक्षतः ॥ यह ग्रन्थ प्रकाशित नहीं हुआ है।' चतुर्विशिकोद्धार अवचूरि :
'चतुर्विशिकोद्धार' ग्रन्थ पर नरचन्द्र उपाध्याय ने अवचूरि भी रची है। यह अवचूरि प्रकाशित नहीं
ज्योतिष्सार संग्रह :
नागोरी तपागच्छीय आचार्य चन्द्रर्कितिसूरि के शिष्य हषर्कितिसूरि ने वि. सं. १६६० में 'ज्योतिषसार संग्रह' नामक ग्रंथ की रचना की है। इसे 'ज्योतिषसारोद्धार' भी कहते है। यह ग्रन्थ तीन प्रकरणों में विभक्त
ग्रन्थकार ने भक्तामर, लघुशान्तिस्त्रोत, अजितशान्तिस्तव, उवसग्गहरंथोत, नवकार मन्त्र, आदि स्त्रोतों पर टीकाएँ लिखी है। १. जन्मपत्री पद्धति : ___नागोरी तपागच्छीय आचार्य हषर्कितिसूरि ने करीब वि. सं. १६६० में 'जन्मपत्री पद्धति' नामक ग्रन्थ की रचना की है।
इसकी एक पत्र की प्रति अहमदाबाद के ला. द. भारतीय संस्कृति विद्या मन्दिर में है। अहमदाबाद के डेला के उपाश्रय भंडार में इसकी हस्त लिखित प्रति है।
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