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________________ [३०३ मुहूर्तराज ] साधक अक्षर - के, के, को, कौ साध्यजिन तारा योनि | वर्ग विंशोपक गण । | राशि नाडी आद्य स्वकीय विरुद्ध साध्यनाम | मिथुन | वृश्चि . बिडाल उन्दिर क लभ्य ९,२,४ आद्यवेध मध्यम |सम अशुभ मध्यम श्रेष्ठ स्व एकम व शुभ श्रेष्ठतर वैर । २ शुभ सम वेध अशुभ अशुभ प्रीति श्री ऋषभदेवजी श्री अजितनाथजी |श्री सम्भवनाथजी |श्री अभिनन्दनजी श्री सुमतिनाथजी ६ | श्री पद्मप्रभुजी श्री सुपार्श्वनाथजी श्री चन्द्रप्रभजी श्री सुविधिनाथजी श्री शीतलनाथजी श्री श्रेयांसनाथजी श्री वासुपूज्यजी श्री विमलनाथजी श्री अनन्तनाथजी श्री धर्मनाथजी श्री शान्तिनाथजी १७ || श्री कुंथुनाथजी श्री अरनाथजी श्री मल्लिनाथजी श्री मुनिसुव्रतजी श्री नमिनाथजी श्री नेमिनाथजी श्री पार्श्वनाथजी २४ | श्री महावीरस्वामीजी राशि पति 0 * 4 4 4 4 4 4 4 4 4 4 जू में 4 * * * 44 व वैर मध्यम सम स्व मध्यम वेध मध्यम | |श्रेष्ठ श्रेष्ठ अशुभतर शुभ वेध अशुभ अशुभ श्रेष्ठ अशभ प्रीति २२ । वैर शुभ वेध श्रेष्ठतर |शुभ श्रेष्ठतर वेध नक्षत्र युजि पुनर्वसु मध्यम मध्यम एकनाथ वर्ण वश्य बिना सिंह धनु मिथुन कन्या शूद्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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