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________________ २६६ ] [ मुहूर्तराज परिशिष्ट (क) - गणित विभाग - किसी भी कार्य के मुहूर्त में पञ्चाङ्गशुद्धि एवं दिनशुद्धि की ही भांति लग्नशुद्धि भी अत्यावश्यक ही नहीं अपितु अनिवार्य भी है। इसी के साथ-साथ ग्रहस्पष्टीकरण एवं उनकी षड्वर्ग स्थिति को ज्ञात करना भी तथैव उपादेय है। अतः इस परिशिष्ट (क) में इन सभी की साधन विधि प्रदर्शित की जाएगी। उक्त सबी बिन्दुओं की (लग्न, ग्रहस्पष्टीकरण एवं षड्वर्गीय ग्रहस्थिति) की जानकारी के लिए अर्थात् उनके साधनार्थ सर्वप्रथम सूर्योदय से इष्ट घटी पल ज्ञातव्य हैं। इष्ट घटी पल तात्पर्य__ जिस ग्राम या नगर में जिस दिन जिस समय में हम जिस किसी शुभकर्म का आरम्भ करना चाहते हैं, उस दिन उस समय में उस स्थान पर पूर्व क्षितिज से सूर्योदय हुए कितने घंटे और मिनट व्यतीत हो चुके हैं अथवा कितनी घटियाँ एवं पल बीत चुकी हैं इसे ज्ञात करना ही सूर्योदय से इष्ट घटीपलानयन कहा जाता है। समय प्रकार समय के दो प्रकार व्यवहृत होते हैं प्रथम स्टेण्डर्ड जो सर्वत्र एक-सा होता है एवं द्वितीय स्थानीय जो भिन्न-भिन्न स्थानों की अक्षप्रभानुसार भिन्न-भिन्न होता है। अधिकतर पंचांगों में स्थानीय सूर्योदय एवं स्थानीय सूर्यास्त का समय लिखा रहता है अतः इष्ट घटीपल साधनार्थ हमें तत्स्थानीय समय ज्ञात करना पड़ता है। स्थानीय समय ज्ञानोपाय___ इष्ट स्थानीय समय को ज्ञात करने के लिए “समयान्तर समीकरण" जिसमें भिन्न-भिन्न ग्रामों एवं नगरों के सामने भिन्न-भिन्न मध्यमान्तर मिनटें लिखी रहती हैं और जिन्हें स्टेण्डर्ड समय में यदि वे ( x ) चिह्न से अंकित हों तो जोड़ना एवं चिह्न रहित हो तो स्टेण्डर्ड समय में से घटाना पड़ता है का उपयोग किया जाता है और तत्पश्चात् “वेलान्तर सारणी” के अनुसार इष्ट दिन के अंग्रेजी मास एवं तारीख के हिसाब से कतिपय मिनटों को मध्यमान्तर संस्कार से संस्कृत स्थानीय समय में ऋण हों तो जोड़ना एवं धन हो तो घटाना पड़ता है तब उचित स्थानीय समय निकल आता है। इस प्रकार आगत स्थानीय समय में से स्थानीय सूर्योदय समय को घटाकर अवशिष्ट घंटों एवं मिनटों को २॥ से गुणित कर लेना चाहिए, क्योंकि एक घंटा = २॥ घड़ी एवं १ मिनट = २॥ पलें होती हैं। इस प्रक्रिया से मुहूर्त सम्बन्धी क्षण घटीपलात्मक उपलब्ध हो जाता है जिसे सूर्योदय से इष्ट घटी पल भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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