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________________ २५८ ] [ मुहूर्तराज मुथुशिल योग- (भुवनदीपक वृत्ति) यदि शीघ्रगतिक क्रूरग्रह मंदगति ग्रह के तुल्यांश तक उससे पीछे-पीछे ही रहे तब तक मुथुशिल योग होता है। मूशरिफ योग जब शीघ्रगतिक क्रूर ग्रह मन्दगतिक ग्रह के तुल्यांश में मिलकर उस अंश का उल्लंघन करने आगे चला जाय उस राशि के पूर्ण होने तक मूशरिफ योग बनता है। ये दोनों योग ठीक नहीं है इनका होना ग्रह की निर्बलता का सूचक है। ऊपर जो बीस बल ग्रहों के बताए हैं उनमें जो मुथुशिल और मूशरिफ योगों को ग्रहबल बतलाया गया है वह तब जबकि शुभग्रहों के साथ ये योग बनते हों। यहाँ पूर्व श्लोक में ग्रहों की बलवत्ता बतलाई गई है। अब प्रसंगोपात्त ग्रहों की बलहीनता के विषय में भी देखिए। ग्रहों की बलहीनता- (भु.द्वीप.वृत्ति) स्वमित्र नीचगो वक्रः, स्वराश्यस्तारिवर्गगः । लग्नाद् द्वादशगः, षष्ठ, क्रूरैर्युक्तोऽथ वीक्षितः ॥ याम्यो रातास्यपुच्छस्यो, बालो वृद्धोऽस्तगो जितः । मुथुशिले मूशरिफे पापैरित्यबलो ग्रहः ॥ अर्थ - यदि ग्रह स्वयं की नीच राशि में, मित्र की नीच राशि में, वक्रता में, अपनी राशि से सातवीं राशि में, अपने शत्रुवर्ग में, लग्न से बारहवें स्थान में, लग्न से छठे स्थान में स्थित हो। क्रूरग्रहयुक्त हो, क्रूरग्रह से दृष्ट हो, दक्षिणायनगत हो, राहु के मुखभूत नक्षत्र पर स्थित हो, राहू के पुच्छभूत नक्षत्र में हो, सद्यः उदय प्राप्त हो, वृद्ध अर्थात् अस्त होने वाला हो, अस्त हो, जीता हुआ हो अर्थात् ग्रहयुद्ध में दक्षिणगामी हो, क्रूरग्रह से मुथुशिल योग में हो और मूशरिफ योग में हो तो वह ग्रह बलहीन कहा जाता है। ये ग्रह बलहीनता १८ प्रकार हैं। राहु मुख एवं पुच्छ का प्रमाण इस प्रकार है- (भु.द्वी. वृत्ति) यत्र ऋक्षे स्थितो राहुर्वदनं तद्विनिर्दिशेत् । मुखात् पञ्चदशे ऋक्षे तस्य पुच्छं व्यवस्थितम् ॥ अर्थ - जिस नक्षत्र पर राहु हो वह नक्षत्र राहुमुख है और उससे १५ नक्षत्र राहु की पूंछ जाननी चाहिए। इस प्रकरण में प्रतिष्ठाकुण्डली में लग्न बलवत्ता एवं ग्रहों की शुभाशुभ स्थिति के विषय में पर्याप्त चर्चा की गई है। यदि ग्रहों की पूर्ण बलवत्ता या लग्न की सौम्यता (शुभावहस्थिति) न हो तो सभी शुभ कार्यों में क्या करना चाहिए इसके उत्तर में इस प्रकार कहा गया है। पञ्चभिः शस्यते लग्नं ग्रहैः बलसमन्वितैः । चतुभिरपि चेत् केन्द्र त्रिकोणे वा गुरु गुः ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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