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________________ मुहूर्तराज ] [२५५ प्रतिष्ठाकुण्डली के ग्रहों की भिन्न-भिन्न स्थितियों में भिन्न-भिन्न देवताओं की प्रतिष्ठा के विषय लल्लश्री अरिहन्त स्थापना में कुण्डली में ग्रह स्थिति बलवति सूर्यस्त सुते बलहीनेऽङ्गारके बुधे चैव मेषवृषस्थे सूर्ये क्षपाकरेऽर्चाहती स्थाप्या ॥ अर्थ - जब कुण्डली में शनि बलवान हो मंगल और बुध बलहीन हों, सूर्य और चन्द्र मेष और वृष में स्थित रहे तब श्री अरिहन्त प्रतिमा की स्थापना करनी चाहिए। श्री महादेव की स्थापना में कुण्डली में ग्रहस्थिति बलहीने त्रिदशगुरौ, बलवति भौमे त्रिकोणस्थे । असुरगुरौ चायस्थे महेश्वरार्चा प्रतिष्ठाप्या ॥ अर्थ - यदि प्रतिष्ठाकुण्डली में गुरु बलहीन हो, मंगल बलवान हो अथवा त्रिकोण में स्थित हो और शुक्र ग्यारहवें स्थान में हो तो श्री महादेव प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए। श्री ब्रह्मा की स्थापना में कुण्डली में ग्रहस्थिति बलहीने त्वसुरगुरौ बलवति चन्दात्मजे विलग्ने वा । त्रिदशगुरावायस्थे स्थाप्या ब्राह्मी तथा प्रतिमा ॥ अर्थ - शुक्र बलहीन हो, बुध बलवान् हो अथवा लग्न में बैठा हो और गुरु ग्यारहवें स्थान में स्थित हो तब ब्रह्मा प्रतिमा की स्थापना करना श्रेयस्कर है। श्री देवीस्थापना में कुण्डली में ग्रहस्थिति शुक्रोदये नवम्यां बलवति चन्दे कुजे गगनसंस्थे । त्रिदशगुरौ बलयुक्ते देवीनां स्थापयेदर्चाम् ॥ अर्थ - नवमी का दिन हो, शुक्र, उदय हो, चन्द्र बलवान् हो, मंगल दशम स्थान में हो एवं गुरु बलवान् हो तब देवी की प्रतिमा स्थापना उपयुक्त है। बुधलग्ने जीवे वा, चतुष्टयस्थे भृगौ हिबुक संस्थे । वासवकुमारयक्षेन्दुभास्कराणां प्रतिष्ठा स्यात् अर्थ - बुध लग्न में हो अथवा गुरु चतुष्टय में (१, ४, ७, १०) हो शुक्र हिबुक (४) स्थान में हो उस समय इन्द्र, कार्तिक स्वामी, यक्षचन्द्र और सूर्य की प्रतिष्ठा करनी चाहिए। फल अस्मात्कालाद् भष्टास्ते कारकसूत्रधारकर्तृणाम् । क्षयमरणबन्धनाभयविवादशोकादिकतरिः ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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