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________________ १६ ] [ मुहूर्तराज होने के कारण चन्द्रमा को शुभ और केन्द्र तथा त्रिकोणेश होने से मंगल को राजयोगकारक कहा है। इसी प्रकार अष्टम भाव (मृत्यु) के द्रेष्काण को मरणकारण कहा गया है तथा महर्षियों या यवनों के सभी ग्रन्थों में- रवि और चन्द्रमा को केवल एक-एक भाव का स्वामी तथा मंगलादि ग्रहों के दो-दो भावों का स्वामी बताया है एवं तदनुसार ही सभी लग्नों में ग्रहस्थिति से शुभाशुभ फल भी कहा है। उपर्युक्तोद्धरणोक्त सभी बातें आर्षलग्न ( सर्वत्र तुल्योदय) सिद्ध भावों से ही सिद्ध हो सकती हैं, अनार्षलग्न (स्वस्वोदय) सिद्ध भावों द्वारा नहीं। क्योंकि स्वस्वोदय द्वारा सर्वत्र सभी भावों की सिद्धि हो ही नहीं सकती, तथा एक ही ग्रह ३-४-५-६ भावों के स्वामी हो जाने से सब फलित ग्रन्थ व्यर्थ हो जाते हैं। कभी सूर्य और चन्द्रमा दो-दो भावों के स्वामी हो जाते हैं- इस प्रकार की अनेक विसंगतियाँ इस अनार्षलग्न से हो जाती है। अब एक उदाहरण द्वारा स्वोदय सिद्ध भावों तथा तुल्योदय सिद्ध भावों को समझाया गया है— उदाहरण – जन्मस्थान काशी। सं. २०१५ अधिक श्रावण शुक्ला १ गुरुवार, सूर्योदय वेला में किसी का जन्म हुआ। इष्ट ०1० सूर्य ३|०|४४।२८, अयनांश, २३।१५। ३२ । दिनार्थ १४।४८ और दिनमान ३३॥३६॥ तनु ३ ४४ २८ • ० तनु 2 go w ४४ २८ धन सह. Jain Education International ३ २८ ९ ४ २० धन ४ О x २५ ३३ ४० ४० सहज ५ ० ४४ ४४ २८ २८ सुख ५ २२ ५८ १७ ० सुख 220m ६ ॥ स्वोदय सिद्ध (अनार्ष) भाव ॥ रिपु मृत्यु धर्म पुत्र ६ २५ ३३ ४४ ४० २८ ४० २० o ७ ७ २८ ९ ४ o स्त्री ९ ४४ २८ २८ २८ o 2 200 ४४ ४४ ४४ ९ २८ ९ ४ १० २५ ३३ ४० २० ४० २८ १० ११ ० कर्म ११ २२ ५८ १७ ० ॥ तुल्योदय सिद्ध (आर्ष) भाव ॥ पुत्र शत्रु स्त्री मृत्यु धर्म कर्म आय व्यय भाव. For Private & Personal Use Only आय ~ 0 ० २५ ३३ ९ ४० ४ ४० १२ १ व्यय ← भाव ० ४४ ४४ ४४ ४४ २८ २८ १ २८ २० ~ 2o u ४४ श. अं. २८ २८ २८ क. वि. प्र. वि. रा. अं. यहाँ अनार्ष लग्न भावों को देखिए- तनुभाव में भी कर्क एवं धन भाव में भी कर्क राशि है । लग्नेश भी चन्द्रमा और द्वितीयेश भी चन्द्रमा । इस प्रकार चन्द्र ही लग्नेश और मारकेश भी सिद्ध होता है जब कि चन्द्रमा को किसी भी फलित ग्रन्थ में २ भावों का स्वामी नहीं बताया गया है। क. वि. www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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