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________________ मुहूर्तराज ] [२३३ - सूर्यमहानक्षत्र से चन्द्रनक्षत्रावधि गणनागत, कलशवास्तुचक्र शुभांग स्थित नक्षत्र स सूर्य नक्षत्र से दक्षिणदिग्गत फल-लाभ चं.नं. ६ से ९ तक पश्चिमदिग्गत फल-धनलाभ चं. नं. १०-१३ तक कलशगुदगत फल-स्थिरता चं. नं. २२-२४ कलशकण्ठगत फल-चिरवास चं. नं. २५-२७ सू अ. आ. | भर. कत्ति. रोहि. अनु. my Jugva | भर. रोहि. ज्ये. कृत्ति पू.षा. रोहि. ज्य | पू.षा. आर्दा आ. आ अन. ज्ये. ܠܢ ܠܢ܂ ܠܕ पू.षा. मघा. अश्विनी न. आ. |पुन. | पु. | आ. | मघा | पू.फा | उ.फा. | पू.भा. उ.भा. रेवती भरणी न. पुन. |पु. आ. | मघा | पू.फा. | उ.फा. हस्त | | चित्रा धनि. | शत. पू.भा.| उ .भा रेवती | | कृतिका न. पुष्य मघा पू.फा.| उ.फा. | हस्त | चित्रा | स्वाती शत. [प.भा.| उ.भा. रेवती |अ. रोहिणी आश्ले. | मघा | पू.फा. उ.फा. हस्त |चित्रा स्वाती | विशा| पू.भा.| उ.भा. रेवती| अ. | मृगशिरा मघा | पू.फा.उ.फा. हस्त | चित्रा | स्वाती विशा. उ.भा. रेवती| अ. | भर. आर्द्रा न.पू.फा. | उ.फा. हस्त | चित्रा | स्वाती विशा. 3 | अ. | कृत्ति. मृग पुनर्वसु न.उ.फा. हस्त | चित्रा | स्वाती विशा. अनु. आर्द्रा पुष्य | चित्रा | स्वाती विशा. अनु. | भर. मृग. ९ आश्लेषा न. चित्रा |स्वाती| विशा. अ उ.षा. | कृत्ति. आर्द्रा १० मघा |स्वाती मूल. उ.षा. श्रवण रोहि. मग. पुन ११] पू.फा. न. विशा. मूल. उ.षा.| श्रवण धनि. मृग, मघा १२/ उ.फा. मूल. पू.षा | उ.षा. श्रवण धनि |शत. | आ. मघा पू.फा. १३/ हस्त उ.षा. श्रवण धनि. | शत. | पू.भा. | उ.फा. १४ चित्रा उ.षा. श्रवण धनि. |शत. पू.भा.| उ.भा. पू.फा. उ.फा. १५ स्वाती श्रवण धनि. | उ.भा. रेवती आ. मघा | पू.फा. उ.फा. हस्त |चित्रा १६ विशाखा |श्रवण धनि. शत. | पू.भा. | उ.भा. रेवती अ.. पू.फा. उ.फा. हस्त चित्रा |स्वाती | अनुराधा श्रवण | धनि | शत | पू.भा.] उ.भा. रेवती | अ. | | पू.फा.| उ.फा. हस्त | चित्रा | स्वाती| विशा. १८ ज्येष्ठा | धनि. पू.भा.| उ.भा. रेवती अ. | उ.फा. हस्त | चित्रा | स्वाती | विशाअनु. पू.भा. उ.भा. रेवती अ. |भर कत्ति | हस्त | चित्रा | स्वाती| विशा. अनु. |ज्ये. २० पू.षा पू.भा. उ.भा. रेवती अ. रोहि. मृग. | चित्रा | स्वाती विशा. २१ उ.षा. उ.भा. | रेवती| अ. | भर. मृग स्वाती विशा. अनु. पू.षा. २२श्रवण रेवती अ. | भर. कृत्ति आर्द्रा पू.षा. २३ धनिष्ठा न. अश्वि . भर. पू.षा. उ.षा. २४ शतभिषा रोहि. मृग. आ. २५/पू.भा. कृत्ति. रोहि मृग. | आर्द्रा मघा | मूल | पू.षा.| उ.षा. श्रवण धनि | |शत. २६/उ.भा. रोहि. मृग.] आर्द्रा पुन. पू.फा. पू.षा. उ.षा.| श्रवण धनि. शत. पू.भा. २७/रेवती | आद्रों पुन. | पु. पू.फा. | उ.फा. उ.षा. | श्रवण धनि. शत. | | उ.भा. | पू.फा. मल हस्त FEEEEEEEEEEEEEEEEET EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE FEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEni EEEEEEEEEEEEEEEEEEE EEEEEEEEEEEEEEEEEEE. EEEEEEEEEEEEEEEEEE EEEEEEEEEEEEEEEEEEEE REFEREE EEEEEEEEEE EEEEEEEEEEEEEEEEEE و هو به ܠ उ.षा. ܠܠ ܠܕ १९/ मूल शत. ܠܦܢ ܠܕ ܠܨ ܛܦܨ कात्त मन | मूल कत्ति रोहि. मूल. | उ.षा. विशा. अनु. अनु. मग आद्रा ज भर. श्रवण | धनि. आ. मू श्रवण आ. आ. मघा मृग. : मधा आ. पू.भा. संसार में जितने जीव हैं वे अपने-अपने कृत कर्मों के अनुसार दुराचारी या सदाचारी बन जाते हैं। जो दुराचारी, अधम और अधमाधम हैं उनको दयापात्र समझकर, उन पर भी समभाव रखना, अति-रौद्र ध्यान को छोड़ना और धर्म-ध्यान में तल्लीन रहना, यह आत्मोन्नति का सरल मार्ग है। - श्री राजेन्द्रसूरि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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