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प्रवेशसमय में शुक्रस्थिति
प्रवेश समय में शुक्र की स्थिति पीछे की ओर प्रवेशकर्ता (गृहपति) के रहनी चाहिए जैसा कि शुक्रं कृत्वा पृष्ठतो वामतोऽर्कम् विप्रान्पूज्यानग्रतः पूर्णकुंभम् । हर्म्य रम्यं तोरणस्त्रग्वितानै स्त्रीभिः स्त्रग्वी गीतमाल्यैर्विशेत्तत् ॥
अन्वय- शुक्रं पृष्ठतः (स्वपृष्ठभागे) वामतः (वामभागे) अर्कम् (रविम्) अग्रतः पूज्यात् विप्रान् पूर्णकुम्भं च कृत्वा तोरणस्त्रग्वितानैः (तोरणपुष्पमालाभिः) रम्यं स्त्रग्वी ( प्रवेशकर्ता स्वयं पुष्पमालां दधत् ) गीतमाल्यैः स्त्रीभिः (सह) तत् हर्म्यम् विशेत् (प्रविशेत्) ।
अर्थ - प्रवेशकर्ता को चाहिए कि जब वह भवन में प्रवेश करे तब शुक्र पीठ पीछे हो, रवि वामभाग में हो तथा आगे-आगे पूर्ण कुंभ एवं विप्रगण हों। इसी प्रकार तोरण एवं पुष्पमालाओं से विभूषित एवं प्रवेशकर्ता स्वकण्ठ में पुष्पमाला धारण किए हुए मंगल गीत गाती हुई सुहागिन स्त्रियों के साथ-साथ उस सुन्दर भवन में प्रविष्ट हो ।
आरम्भसिद्धि में भी
तथा च
" विधाय वामनः सूर्यम् पूर्णकुंभपुरस्सरः ।"
[ मुहूर्तराज
"स्वनक्षत्रे स्वलग्ने वा स्वमुहूर्ते स्वके तिथौ । प्रवेशगृहमाङ्गल्यम् सर्वमेतत्तु कारयेत् ॥ क्षुरकर्म विवादं च यात्रां चैव न कारयेत् । "
अर्थात्- अपने जन्मनक्षत्र में, जन्मलग्न में, जन्ममुहूर्त में एवं जन्म तिथि में गृहप्रवेश एवं सर्व मांगलिक कार्य तो किए जा सकते हैं परन्तु क्षौर कर्म, विवाद एवं यात्रा वर्ज्य है।
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अब नीचे हम एक गृहप्रवेश में एवं आरंभ में ग्रहों की श्रेष्ठस्थानों मध्यम स्थानों एवं अधम स्थानों की स्थिति बतलाने वाली सारणी दे रहे हैं जिसके माध्यम से ग्रहों की प्रवेश एवं आरंभकालिक कुण्डलीगत स्थिति स्पष्ट होगी
ग्रहों की प्रकारत्रय से स्थिति को देखिए ज्यौतिषसार में
कुरा ति छ गारसगा सोमा किन्दे, तिकोणगे सुहया । कूर ठम अइ असुहा सेसा मज्झिम गिहारंभे ॥ किंद ठमन्ति कूरा असुहा ति इगा रहा सुहा सव्वे । कूरा बीआ असुहा सेस समा गिहपवेसे अ ॥ उपर्युक्त प्राकृत श्लोकों का स्पष्टार्थ निम्नलिखित सारणी में देखिए
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