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[ मुहूर्तराज
सूर्यनक्षत्र से
-द्वारकपाटयुग्मयोग में शुभाशुभ फल ज्ञापक तालिका
आगे के | आगे के | आगे के | आगे के | आगे के आगे के आगे के आगे के ४ च.न. २ च.न. ४ च.न. | २ च.न. ३ च.न. २ च.न. ४ च.न.|२ च.न. ४ च.न. तक तक तक तक
तक धनागम | विनाश | सौख्य | बन्धन मृत्यु | हानि | शुभ रोग सौख्य
तक
तक
फल
द्वारवेध विचार
भवन के द्वार के ठीक सामने किन २ की स्थिति नहीं होनी चाहिए अथवा किस तरह होने पर भी दोषप्रद नहीं है इस विषय में वराह मत
मार्गतरुकोणकूपस्तम्भभ्रमविद्धमशुभदं द्वारम् । उच्छ्रायाद्विगुणितां भूमि त्यक्त्वा न दोषाय ॥
अर्थ :- भवनद्वार के ठीक सम्मुख मार्ग स्थित वृक्ष, किसी अन्य भवन का कोण, कूप, स्तम्भ, भ्रम (जलनिर्गमप्रदेश “खाल") इनका होना अशुभफलदायी है, किन्तु द्वार की ऊँचाई से दूनी भूमि को त्याग कर यदि कोण कूपादि हो तो दोषप्रद नहीं है। यदि द्वार की ऊँचाई ५ मीटर हो तो मकान के १० मीटर तक की दूरी से बाहर यदि कोण कूपादि की स्थिति भले ही द्वार के सम्मुख हो तो भी अशुभ नहीं जाननी चाहिए। देखिए गर्ग वाक्य भी
"द्वारोच्छायाद् द्विगुणितां भूमिं त्यक्त्वा बहिःस्थिताः ।
न दोषाय भवन्त्येव. अर्थात् - द्वारदेश से द्वार की ऊँचाई से दूनी भूमि के बाहर स्थित मार्ग, तरु कोण आदि दोषद नहीं होते। द्वारवेधफल-(गर्ग)
रथ्याविद्धं द्वारं नाशाय कुमारदोषदं तरुणा । पंकद्वारे शोको श्ययोऽम्बुनिस्त्राविणि प्रोक्तः ॥ कूपेनापस्मारो भवति विनाशश्च देवताविद्धे ...........कुलनाशी ब्रह्मणोऽभिमुखे भवति ।
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