SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 286
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुहूर्तराज ] और भी - चापादित्रित्रिके सूर्ये प्राच्यादौ वै वसे दगुः । तदिग्द्वारं न कर्तव्यम् कृते स्त्रीधननाशकृत् ।। अन्वय- चापादित्रित्रिके (धनुर्मकरकुम्भत्रये, मीनमेषवृषत्रये, मिथुनकर्कसिंहत्रये कन्यातुलावृश्चिक त्रये च) सूर्ये सति प्राच्यादौ (पूर्वादिदिक्षु) क्रमेण अगुः (राहुः) वसेत्, अत: तदिन्द्रारम् (तस्मिन् दिग्भागे गृहद्वारम्) न कार्यम यदि द्वारं क्रियते तर्हि तत स्त्रीधननाशकृद् भवति । अर्थ- धन मंकर और कुम्भ के सूर्य में पूर्वदिशा में, मीन मेष और वृष के सूर्य में दक्षिण दिशा में, मिथुन कर्क और सिंह के सूर्य में पश्चिम दिशा में तथा कन्या, तुला और वृश्चिक के सूर्य में उत्तदिशा में राहु निवास होता है अत: राहुस्थितिज्ञापक उन २ दिशाओं में (उन २ दिशााओं के सामने ) गृह द्वार करना ठीक नहीं यदि किया जाय तो उससे गृहकर्ता (गृहस्वामी) की स्त्री एवं उसके धन का नाश होता है। स्पष्टतया ज्ञानार्थ सारणी देखिए॥सूर्य संक्रान्त्यनुसार राहुस्थिति दिग्ज्ञापक सारणी॥ पूर्व धनु, मकर, कुम्भ उत्तर कन्या, तुला, वृश्चिक - राहु मीन, मेष, वृषभ दक्षिण मिथुन, कर्क. सिंह पश्चिम द्वारकपाट (किंवाड़) मुहूर्त- (बालबोधज्योतिषसारसमुच्चय) कृता कराब्धियुग्मराममन्तकश्च वारिधिः करौ कृता च सूर्यभाद्दिनःके फलं वदेत् । धनागमं विनाशसौख्यबन्धनं मृतिः क्षतिः शुभं च रोगसौख्यदं कृते कपाटचक्र के ।। अर्थात- सुर्यनक्षत्र से यदि चन्द्रनक्षत्र तक गणना करते ४.२.४.२,३.२.४.२ और ४ ये संख्याएँ आए तो क्रमश. धनागम. विनाश, सौख्य, बन्धन. मृत्यु, हानि, शुभ, रोग और सौख्य ये फल द्वार के किवाड़ बैठाने में जानने चाहिए। इसे स्पष्टतया निम्न तालिका में समझिए - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy