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________________ २०४] [ मुहूर्तराज क्र.सं. दिग्विदिक् दिग्विदिक TET HTET -अथ संक्रान्त्यनुसार शिवस्थिति से गन्तव्य सिद्धिदिग्विदग् बोध सारणी संक्रान्त्यनुसार शिवस्थिति एवं तदनुकूल गन्तव्य दिशा विदिशाएं - सूर्यसक्रांति|१ + । २ + | १ + | २ + । १ + |२ + | १ + |२४ |२-२४ घन्टे→ बजे-बजेत| ब.-ब. | ब.-ब. | ब.-ब. | ब.-ब. ब.-ब. ब.-ब. ब.-ब. प्रातः से ६-७ ७-९ । ९-१० १०-१२ १२-१ | १-३ | ३-४ ।। उत्तर ईशान | पूर्व. | आग्नेय | दक्षिण | नैऋत्य | पश्चिम वायव्य |_- शि.स्थि. सांय तक तथा | गन्तव्य सांय से प्रातः - दिग् पा. प. उ. वा. ई. उ. पू. ई. | आ. पू. द. आ. नै. द. प. नै. | विदिक् नै. द. प. नै.| वा. प. उ. वा. ई. उ. पू. ई. आ. पू. द. आ.] | पश्चिम | वायव्य| उत्तर | ईशान | पूर्व आग्नेय | दक्षिण | नैऋत्य | शि.स्थि. नै. द. प. नै. | वा. प. उ. वा. ई. उ. पू. ई. आ. पू. द. आ. | ग. दि. वि. आ. पू. द. आ. नै. द. प. नै. | वा. प. उ. वा. ई. उ. | पू. ई. - - दक्षिण | नैऋत्य | पश्चिम | वायव्य | उत्तर | ईशान | पूर्व आग्नेया-शि.स्थि. आ. पू. द. आ. नै. द. प. नै.| वा. प. उ. वा. ई. उ. पू. ई. ग. दि. वि. | पू. ई.| आ. पू. द. आ. नै. द. | प. नै. | वा. प. | उ. वा. | 7 | पूर्व आग्नेय दक्षिणा नैऋत्य पश्चिम वायव्य | उत्तर ईशान |- शि.स्थि. पू. ई. आ. पू. द. आ. नै. द. प. नै. वा. प. उ. वा. ग. दि. वि. वा. प. उ. वा. ई. उ. पू. ई. | आ. पू. द. आ. नै. उ. प. नै. - |६-८ ८-९ | ९-११, ११-१३ १२-२ | २-३ | ३-५ ५-६x२, २४ वायव्य | उत्तर | ईशान | पूर्व आग्नेय | दक्षिण | नैऋत्य | पश्चिम |– शि. स्थि. वृष दि. | प. नै. | वा. प. उ. वा. ई. उ. पू. आ. | आ. पू. द. आ. | नै. द. | गन्तव्य |द. आ. | नै. द. प. नै.| वा. प. उ. वा. | ई. उ. | पू. ई. आ. पू./- दिग् द. आ. | नै. द. प. नै. वा. प. उ. वा.ई. उ. पू. ई. आ. पू. विदिक् नैऋत्य पश्चिम वायव्य उत्तर ईशान | पूर्व आग्नेय दक्षिण - शि.स्थि. दिग्विदिक् में दिग्विदिक में |दिनवरात्रि दिग्विदिक दिग्विदिक द. आ. | नै. द. प. नै.] वा. प. उ. वा. | ई. उ. पू. ई. आ. पू. पू. ई. आ. पू. द. आ. नै. द. प. नै. वा. प. उ. वा.ई. उ. | आ. पू. द. आ. नै. द. | प. नै. | वा. प. उ. वा.ई. उ. | आग्नेय | दक्षिण | नैऋत्य | पश्चिम वायव्य | उत्तर | ईशान | पूर्व गन्तव्य - दिग् विदिक् - शि.स्थि. दिग्विदिक् पू. ई. आ. पू. द. आ. नै. द. | प. नै. | वा. प. उ. वा. | ई. उ. उ. वा. | ई. उ. | पू. ई. | आ. पू. द. आ. | नै. द. प. नै. वा. प. | उ. वा. | ई. उ. पू. ई. आ. पू. द. आ. नै. द. प. नै. वा. प. ईशान | पूर्व | आग्नेय, दक्षिण | नैऋत्य | पश्चिम | वायव्य | उत्तर गन्तव्य दिग् विदिक् - शि.स्थि. दिग्विदिक उ. वा. | ई. उ. पू. ई. ] आ. पू. द. आ. | नै. द. | प. नै. | वा. प. | गन्तव्य - विदिक् प. नै. | वा. प. उ. वा. ई. उ. | पू. ई. | आ. पू. द. आ. नै. द. | दिग् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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