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१९२ ]
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सं.
क्र. प्राह्य सूर्य संक्रान्तियाँ
१
रम्भार्थ संक्रान्तियों एवं तत्संयोग से मासों की ग्राह्याग्राह्यता सूचक सारणी
अग्राह्य सूर्य संक्रान्तियाँ
संक्रान्ति विशेष संयोग से ग्राह्य मास
संक्रांति विशेष संयोग
से अग्राह्य मास
मेष
X
मेष
चैत्र
मीन
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चैत्र
तृणादिनिर्मेय घरों के आरम्भ में
२
वृष
X
मि.
वै.
-
X X
X
वृष वृष
वैशा
ज्ये.
३
मिथुन
मि.
ज्ये.
४
कर्क
X
५
सिंह
X
कर्क
कर्क
आषा. श्रा.
मि. मि.
आषा. श्री.
X
X
६
कन्या
सिंह
भाद्र.
कन्या
भाद्र
७
तुला
X
८
वृश्चि
X
तुला वृश्चि. आश्वि. कार्ति
निषिद्धेष्वपि ऋक्षेषु स्वानुकूले शुभे दिने । तृणदारुगृहारम्भे मासदोषो ने विद्यते ॥
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• (मु.चि.वा.प्र. श्लो. १७ वाँ)
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X १०
११
X मकर कुम्भ
९
धनु
[ मुहूर्तराज
X
कन्या कन्या कन्या धनु आश्वि. का. भाग. पौष
उपर्युक्त सौर एवं चान्द्रमासों की गेहारम्भ में जो ग्राह्याग्राह्यता बतलाई गई है यह नियम तृणादि से निर्मेय घरों (झोपड़ियों) के लिए नहीं है। वैसे घरों को तो अपने लिए अनुकूल किसी भी दिन बनवा लेना चाहिए। यही बात व्यवहार समुच्चय में कही गई है।
(व्य.स.)
X
X X
वृश्चि. मकर मकर मकर मार्ग. पौष
कुम्भ कुम्भ फाल्गु.
माघ
पूर्णेन्दुतः प्राग्वदनं नवम्यादिषूत्तरास्यं त्वथ पश्चिमास्यम् । दर्शादितः शुक्लदले नवम्यादौ दक्षिणास्यं न शुभं वदन्ति ॥
१२
मीन
अर्थ - गेहारम्भ के हेतु निषिद्ध नक्षत्रों में भी अपने लिए अनुकूल शुभ दिन को तृण (घासफूस ) एवं लकड़ी से बनने योग्य घरों को बनवाना चाहिए उनके आरम्भ में उपरिलिखित सौर एवं चान्द्र मास सम्बन्धी दोष नहीं लगता ।
तिथि के अनुसार गृहद्वार का निषेध
धनु
मीन
माघ फाल्गु.
अन्वय - पूर्णेन्दुत: (पूर्णिमात: कृष्णाष्टमी यावत्) प्राग्वदनम्, (पूर्वमुखं) तथा नवम्यादिषु (कृष्णनवमीत: चतुर्दशीतिथिं यावत्) उत्तरास्यं (उत्तरमुखम् ) अथ शुक्लपक्षे दर्शादित: ( अमावास्यातः शुक्लाष्टमीं यावत्) पश्चिमास्यं, (पश्चिममुखम् ) नवम्यादौ ( शुक्लनवमीतः शुक्ल चतुर्दशीं यावत्) दक्षिणास्यं (दक्षिणमुखम् ) गृहं शुभं न वदन्ति ।
अर्थ - पूर्णिमा से कृष्णपक्ष की अष्टमी तक पूर्वमुख, कृष्णपक्ष की नवमी से कृष्णचतुर्दशी तक उत्तरमुख, अमावस से शुक्लपक्ष की अष्टमी तक पश्चिममुख एवं शुक्ल नवमी से शुक्ल चतुर्दशी तक दक्षिणमुख गृह का निर्माण शुभ नहीं मानते हैं। यही बात स्पष्टतया व्यवहार समुच्चय में -
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