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________________ १७६ ] [ मुहूर्तराज आयों की ग्रहण करने की व्यवस्था - (आ.सि.) वृष सिंहं गजं चैव खेटकर्बटकोयोः द्विपः पुनः प्रयोक्तव्यो वापीकूपसरस्सु च । मृगेन्द्रमासने दद्यात् शयनेषु गजं पुनः । वृष भोजनपात्रेषु छत्रादिषु पुनर्ध्वजम् ॥ अग्निवेश्मसु सर्वेषु गृहे वह्नयुपजीविनाम् । धूमं नियोजयेत् केचित् श्वानं म्लेच्छादि जातिषु खरो वेश्यागृहे शस्तो ध्वांक्षः शेषकुटीषु च ॥ वृषसिंहौ ध्वजाश्चापि प्रासादपुरवेश्मसु ॥ - स्थानानुसार आयग्रहणव्यवस्था बोधक सारणी - क्र.सं. आय ग्रहण करने के स्थान ध्वज धूम हरि (सिंह) श्वा (कुत्ता) छत्रचामर, अग्निगृह एवं अग्नि के उपजीवी, गाँव, किला, आसन, प्रासाद, नगरगृह म्लेच्छादिगृह गाँव, किला, भोजनपात्र, प्रासाद, नगरगृह वैश्यागृह गाँव, किला, बावडी, कूप, तालाब, शय्या, प्रासाद, नगरगृह छोटी-छोटी झोपड़ियाँ। वृष खर (गधा) हाथी कौआ आयानुसार गृहद्वार - (मु.चि.वा.प्र. श्लोक ५ वाँ) सर्वदिशिध्वजे मुखं कार्यं हारौ पूर्यामोत्तरे तथा । प्राच्यांवृषे प्राग्यमयोर्गजेऽथवा पश्चादुक्पूर्वयमे द्विजादितः ॥ आयानुसार गृहद्वार के विषय में मु.चि. कार कहते हैं कि यदि निर्भय भवन का धवज आय हो तो उस भवन के चतुदिग्द्वार, हरि (सिंह) आय हो तो पूर्व-दक्षिण-उत्तर में द्वार, वृष आय हो तो केवल पूर्व में ही द्वार एवं गज आय हो तो पूर्व एवं दक्षिण में द्वार कराने चाहिए। इसी को निम्नलिखित सारणी में सम्यग्ज्ञानार्थ दर्शाया गया है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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