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________________ १७० ] [ मुहूर्तराज अन्वय नामभात् (गृहकर्तृपुरुषनामराशेः) यद्भं (निर्मेयगृहग्रामराशि:) द्वयङ्कसुतेशदिङ्गितम् (द्वितीयपंचमनवमदशमैकादशक्रमगतम्) स्यात् असौ ग्रामः शुभः (गृहं विधाय वासयोग्यः इत्यर्थः ) अथ स्वं वर्गम् (खगेश मार्जारादि वर्गसंख्याम्) द्विगुणं विधाय परवर्गाढ्यं (ग्रामवर्गसंख्यायुक्तं ) गजैः शेषितं, काकिण्यः (अवशिष्टाः काविण्यः पुरुषस्य तथैव ग्रामवर्गसंख्यां द्विगुणां विधाय पुरुष वर्गसंख्यया युक्तां कृत्वा गजैः (अष्टभिः) शोषितम् एता: ग्रामस्य काकिण्यः ज्ञेया: ) अनयोस्तु पुरुषग्रामकाकिण्योः विवरत: (अन्तरे कृते ) यस्य (पुंसः ग्रामस्य वा काकिण्यः) अधिकाः सः अर्थदः (अर्थदाता ऋणी वा स्यात् । अथ द्विजवैश्यशूद्रन्टपराशीनां द्वारं (गृहप्रवेशद्वारं) पूर्वतः (पूर्वदक्षिणपश्चिमोत्तरदिशासम्मुखे) हितं शुभावहं स्यात् । अर्थ - जो कोई व्यक्ति जिस किसी गाँव या नगर में मकान बनवाना चाहता है उसे अपनी नाम राशि से गाँव या नगर की राशि तक गणना करनी चाहिए। यदि पुरुष की राशि से नगर या गाँव की राशि दूसरी, नवीं, पाँचवीं, ग्यारहवीं और दसवीं हो तो वह गाँव या नगर उस व्यक्ति के लिए निवासार्थ गृहनिर्माण में शुभ समझा गया है। अब एक ओर शुभाशुभ फल जानने के विषय में बात बतलाई जाती है, जिसे काकिणी कहते हैं यथा गृहनिर्माण कर्त्ता पुरुष के नाम का आदि वर्ण गरुड मार्जरादि जिस वर्ग का हो उसकी क्रम संख्या को दूना करके उसमें गाँव या नगर के नामादि वर्ण के वर्ग की संख्या जोड़कर उसमें ८ का भाग लगाने पर जो शेष रहें वह उस गृहनिर्माता की काकिणी हुई; और इसी प्रकार गाँव अथवा नगर नामादिवर्ण की वर्गसंख्या को दूना करके उसमें गृहनिर्माता के नामादिवर्ण के वर्ग की संख्या जोड़कर उसमें भी ८ का भाग देने पर जो शेष अंक रहे, उन्हें उस गाँव या नगर की काकिणी जानना चाहिए । फिर जिसकी काकिणी अधिक हो वह कम काकिणी वाले का दोनों काकिणी संख्याओं की अन्तरतुल्य संख्या के अनुपात से ऋणी हैं। यदि पुरुष की काकिणी संख्या गाँव की काकिणी संख्या से कम हो अथवा तुल्य हो तो उस व्यक्ति के लिए उस गाँव या नगर में गृह निर्माण करना शुभद है। इसके विपरीत यदि गाँव या नगर की काकिणी संख्या कम और निर्माण कर्ता की अधिक हो तो वह गाँव या नगर उस व्यक्ति के निवासार्थ गृह निर्माण करने योग्य नहीं है। वह नगर या गाँव उस व्यक्ति का लेनदार है और वह व्यक्ति देनदार है, अर्थात् ह व्यक्ति उस गाँव या नगर का कर्जदार है। ऐसे कम काकिणी वाले गाँव या नगर में उस अधिक काकिणी वाले व्यक्ति के लिए भवन बनवाना कतई लाभप्रद एवं सुखप्रद नहीं हो सकता। इस प्रकार काकिणियों द्वारा शुभाशुभ जान लेने के बाद शुभफल देखकर भवन बनवाना चाहिए। उसमें भी राशि वर्णादि के अनुसार भवन का मुख्य द्वार किस दिशा में रखना चाहिए इस विषय में इसी श्लोक के चतुर्थपद में मुहूर्त चिन्तामणिकार कहते हैं कि जिन गृह निर्माणेच्छुक व्यक्तियों की कर्क, वृश्चिक अथवा मीन राशि हो उन्हें अपने गृह का मुख्य द्वार पूर्व दिशा की ओर वृष, कन्या एवं मकर राशि वाले व्यक्तियों को स्वगृहमुख्य प्रवेशद्वारदक्षिण की ओर मिथुन, तुला एवं कुंभ राशि वालों को पश्चिम की ओर तथा मेष, सिंह एवं धनु राशि वाले व्यक्तियों को अपने घर का मुख्य द्वार उत्तर दिशा की ओर स्थापित करवाना चाहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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