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मुहूर्तराज ]
[१५५ नहीं करने चाहिए। अर्थात् उक्त बुध, गुरु, जामित्र दोषों एवं धनुरर्कादि मासदोष में भी यात्रा की जा सकती है।
ज्वरोत्पत्ति से उसके स्थायित्व की दिन संख्या एवं सर्पदंश से शीघ्र मृत्यु के विषय में मुहूर्त चिन्तामणिकार(१) ज्वरोत्पत्ति समय से ततस्थितिदिनसंख्या - (मु.चि.न.प्र. श्लो. ४५, ४६ वाँ)
स्वातीन्द्रपूर्वाशिवसार्पभे मृतिर ज्वेऽन्त्यमैत्रे स्थिरता भवेद्रुजः । याम्यश्रवोवारुणतक्षभे शिवा, घस्त्रा हिं पक्षो द्वयधिपार्कवासवे ॥ मूलाग्निदारने नव पित्र्यमे नखा, बुध्यार्यमेज्यादिति धातृमे नगाः ।
मासोऽब्बवेश्वैऽथ यमाहिमूलभे, मिश्रेशपित्र्ये फणिदंशने मृति ॥ अन्वय - स्वातीन्द्रः (ज्येष्ठा) पूर्वाः (पूर्वात्रयम्) शिवः (आर्द्रा) सार्पभम् (आश्लेषा) एषुनक्षत्रेषु यदि ज्वरोत्पत्तिस्तर्हि ज्वरपीडितस्य मृत्युरेव स्यात्। अन्त्यमैत्रे (रेवत्यनुराधानक्षत्रयोः) ज्वरे सति रुज: (रोगस्य) स्थिरता (महता कालेन रोगस्य निवृत्तिः) स्यात्। तथा याम्यश्रवोवारुणतक्षभे (भरणीशवण शततारका चित्रासु) शिवाः (एकादश) घ्ररत्राः (दिनानि) यावत् रोगास्थिरता, द्वयधि यार्कवासवे (विशाखा हस्तधनिष्ठानक्षत्रेषु) ज्वरोत्पत्ति: स्यात्तर्हि पक्षः (पञ्चदिनानि यावत्) रोगस्थैर्मम्, मूलाग्निदासे (मूलकृत्तिकाश्विनीषु) ज्वरौत्पत्तौ सत्याम् नव, पित्र्यमे (मघायाम्) नखाः दिवसाः, बुध्यार्यमेज्यादितिधातृमे (उत्तराभाद्रपदोत्तराफाल्गुनीपुष्यपुनर्वसुरोहिणीनक्षत्रेषु नरोः (सप्त दिनानि यावत्) अब्जवैश्वे (मृगशिरउत्तराषाढ़योः) रोगोद्भवे मास: (त्रिंशदिनानियावत्) रोगस्य स्थिरता तत: निवृत्तिः। अथ यमाहिमूलमे (भरण्याश्लेषामूलेषु) मिश्रेशपित्र्यभे (मिश्रसंज्ञकयोः विशाखाकृत्तिकयोः तथा ईशे आज़्याम् पित्र्यमे मघायाम्) यदि सर्पदंशस्त्रदा तद्दष्टस्य मृतिः मरणं भवेत्।
अर्थ - स्वाती, ज्येष्ठा, तीनों पूर्वा, आर्द्रा और आश्लेषा में यदि कोई व्यक्ति ज्वरग्रस्त हो उसकी मृत्यु हो जाती है अथवा उसे मृत्यु तुल्य कष्ट भुगतना पड़ता है। रेवती एवं अनुराधा में ज्वरोत्त्पत्ति होने पर ज्वर कुछ समय तक बना रहता है और बाद में स्वास्थ्य लाभ हो जाता है। भरणी, श्रावण, शतभिषा
और चित्रा में ज्वर होने पर वह ज्वर ११ दिन पर्यन्त विशाखा हस्त धनिष्ठा में होने वाला ज्वर १५ दिनों तक, मूल कृत्तिका एवं अश्विनी में हो तो ९ दिनों तक मघा में उत्पन्न ज्वर २० दिनों तक, उत्तराभाद्रपद उत्तराफाल्गुनी, पुष्य, पुनर्वसु एवं रोहिणी में हो तो सात दिनों तक मृगशिर एवं उत्तराषाढ़ा में उत्पन्न ज्वर एक मास तक स्थिर रहता है ततः रुग्ण व्यक्ति स्वस्थ हो जाता है। नक्षत्रविशेष में सर्पदंश से मृत्यु
यदि भरणी, आश्लेषा, मूल, कृत्तिका, विशाखा, आर्द्रा और मघा इन नक्षत्रों में से किसी एक नक्षत्र के दिन किसी को सर्प डॅसे तो उस डॅसे गए व्यक्ति की निश्चित रूपेण मृत्यु हो जाती है।
ज्वरोत्पत्ति के बाद उसके स्थायित्व की दिनसंख्या के विषय में वशिष्ठ भी उपर्युक्त चिन्तामणिकार के वचनानुरूप ही कहते हैं
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