SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 210
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुहूर्तराज ] [१४१ अर्थात् - जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक स्वयं प्रस्थानकार्य करता है उसे यात्रामार्ग में यात्रा का सम्पूर्ण फल प्राप्त होता है। प्रस्थानदिनसंख्या तथा मैथुन निषेध-(मु.चि.या.प्र. श्लो. ९५ वाँ) । प्रस्थाने भूमिपालो दशदिवसभभिव्याप्य नैकत्र तिष्ठेत् , सामन्तः सप्तरात्रं तदितरमनुजः पञ्चरात्रम् तथैव । ऊर्ध्वं गच्छेच्छुभाहेऽप्यथ गमनदिनात् सप्तरात्राणि पूर्वम् चाशक्तौ तद्दिनेऽसौ रिपुविजयमना मैथुनं नैव कुर्यात् ॥ अन्वय - भूमिपालो राजा प्रस्थाने दशदिवसमभिव्याप्य न तिष्ठेत् (दशादिनेभ्यः प्रागेवाग्रे चलेत्) सामन्तः (माण्डलिकः) सप्तरात्रमेकत्र प्रस्थाने न वसेत्। तदितरमनुष्य: भूपस्पमन्तातिरिक्तसाधारणजनः पञ्चरात्रम् न वसेत्। यदि ऊर्ध्वम अवधिदिवसातिक्रमे पुन: गृहभागत्य शुभाहे शुभदिवसे गच्छेत् अथ गमनदिवसात् पूर्व सप्तरात्राणि अथवा अशक्तौ कामुकत्वास्थातुम् असमर्थतायाम् तद्दिने यात्रा दिवसे मैथुनम् नैव कुर्यात्। अर्थ - स्वशत्रु पर विजयलाभ के इच्छुक राजा को चाहिए कि वह प्रस्थान में उस स्थान पर दस दिन व्यतीत न करे अर्थात् दस दिवस बीतने के पूर्व ही अपनी आगे की यात्रा प्रारम्भ कर दे। सामन्त के लिए सात रातें बिताना तथा सामान्य जन के लिए पाँच रातें बिताना प्रस्थान नियम के विरुद्ध है। तथा च यात्रा के सात रात्रि पहले ही अथवा अधिक कामावेश के कारण नहीं रहा जा सके तो यात्रा की रात्रि में मैथुन नहीं करें। यात्रा के पूर्व मैथुन त्याग के विषय में “च्यवन” - त्रिरात्रम् वर्जयेत् क्षीरं पञ्चाहं क्षुरकर्म च । तदहश्चावशेषाणि सप्ताहं मैथुनं त्यजेत् ॥ ___ अर्थात् - यात्रा के तीन दिन पूर्व दूध का पांच दिन पूर्व हजामत का तथा यात्रा दिन को मधु एवं तैल का तथा सात दिन पूर्व मैथुन का त्याग करना चाहिए। प्रस्थानकर्ता के नियम-(मु.चि.या.प्र. श्लो. ९६ वाँ) दुग्धं त्याज्यं पूर्वमेव त्रिरात्रम्, क्षौरं त्याज्यं पञ्चरात्रं तु पूर्वम् । क्षौद्रं तैलं वासरे ऽस्मिन्व मिश्च त्याज्यं यत्नाद भूमिपालेन नूनम् ॥ अन्वय - यात्रादिवसात् पूर्वं भूमिपालेन राज्ञा अन्येन केनचिद् वा यात्रार्थिना त्रिरात्रम् दुग्धं त्याज्यम् (दुग्धं न पेयम्) पश्चरात्रं पूर्वं च क्षौर (मुण्डन श्मश्रुकर्म ज) त्याज्यम्, अस्मिन् वासरे यात्रा दिवसे च क्षौद्र, तैलं वमिश्च (वमनम् च) नूनं त्याज्यम्। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy