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________________ १३६ ] [ मुहूर्तराज यात्रा दिवस की पञ्चाङ्गशुद्धि होने पर भी चित्तोत्साह, अंगस्फुरण एवं शकुनापशकुनादि का विचार करना यात्रा में अति आवश्यक है अत: इस विषय में चिन्तामणिकार कहते हैंमन:शुद्धिनिमित्तादिप्रशंसा–(मु.चि.या.प्र. श्लो. ७८ वाँ) चेतोनिमित्तशकुनैरतिसुप्रशस्तैः ज्ञात्वा विलग्नबलमुळधिपः प्रयाति । सिद्धिर्भवेदथ पुनः शकुनादितोऽपि , चेतोविशुद्धिरधिका न च तां विनेयात् ॥ अन्वय - यदि अतिप्रशस्तैः चेतोनिमित्तशकुनैः (सद्भिः) विलग्नबलमपि ज्ञात्वा उळधिप: प्रयाति तदा सिद्धिर्भवेत् अथ पुन: शकुनादित: अपि चेतो विशुद्धिः अधिका (मता) तां च विना न इयात् (गच्छेत्)। अर्थ - अतिप्रशंसनीय चित्तविशुद्धि, अंगस्फुरण एवं शुभ शकुनादि के होने पर लग्नशुद्धि देखकर यदि यात्रार्थी यात्रा करे तो उसे अवश्यमेव सिद्धि मिलती है। शकुनादि के श्रेष्ठ होने पर भी यदि चित्त विशुद्धि (चित्त में उत्साह) न हो तो यात्रा नहीं करनी चाहिए। यात्रा में चेतोविशुद्धि आदि के विषय में नारद मत मनोनिमित्तशकुनैर्लग्नं लब्ध्वा रिपोः पुरम् । _ विजिगीषुर्यो व्रजनि विजयश्रीस्तमेत्यलम् ॥ अर्थात् - जो मनोविशुद्धि, निमित्त और शकुनादि एवं लग्नबल देखकर शत्रु नगर पर आक्रमणार्थ यात्रा करता है उसे विजयश्री अवश्यमेव वरण करती है। निमित्तशकुनादि से भी मनोविशुद्धि की विशेषता-(कश्यप मत से) निमित्तशकुनादिभ्यः प्रधानो हि मनोजयः । तस्माद् यियासितांनृणां फलासिद्धिर्मनोजयात् ॥ अर्थात् - निमित्त एवं शकुनादिको से भी मनोज्य (चित्तोत्साह) प्रधान है अत: मनोजय के होते यात्रार्थियों को यात्रा करने पर उन्हें अवश्य ही फलसिद्धि प्राप्त होती है। यात्रा में निषिद्ध निमित्त-(मु.चि.या.प्र. श्लो. ७९) व्रतबन्धनदैवतप्रतिष्ठाकरपीडोत्सवसूतकासमाप्तौ न कदापि चलेत् अकालविद्युद्धनवर्षातुहिनेऽपि सप्तरात्रम् ॥ अन्वय - व्रतबन्धनदैवतप्रतिष्ठाकरपीडोत्सवसूतकासमाप्तौ अकालविद्युद्घनवर्षातुहिनेऽपि सप्तरात्रम् कदापि न चलेत्। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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