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________________ १३४ ] [ मुहूर्तराज अभिजित् प्रशंसा में श्रीपति मत अष्टमो ह्यभिजिदाह्वयक्षणो दक्षिणाभिमुखयानमन्तरा । कीर्तितोऽपरककुप्सु सूरिभिर्यायिनामभिमतार्थसिद्धये ॥ अन्वय - सूरिभिः दक्षिणाभिमुखयानमन्तरा (दक्षिणयात्राम् विहाय) अष्टमः अभिजिदाह्रयक्षण: (अभिजिन्मुहूर्तम्) अपरककुप्सु यायिनाम अभिमतार्थसिद्धये (अभिमतासिद्धिदम्) कीर्तितिः (कथितः) अर्थ - अनेक पूर्वाचार्यों का कथन है कि दिवस का आठवाँ मुहूर्त (मध्याह्नकाल के पूर्वापर भाग की १-१ घड़ी) दक्षिण दिशा की यात्रा के अतिरिक्त सभी दिशाओं की यात्रा में यात्रार्थियों को उनकी अभिमतसिद्धि को देने वाला होता है। यात्रालग्न कुण्डली में ग्रहों की शुभाशुभफलदायकता-(मु.चि.या.प्र. श्लो. ५६ वाँ) केन्द्रे कोणे सौम्यखेटाः शुभाः स्युः , याने पापाः त्र्यायषटखेषु चन्द्रः । नेष्टो लग्नान्त्यारिरन्धे शनिः खेड स्ते शुक्रो लग्नेणनगान्त्यारिरन्धे ॥ अन्वय - याने (प्रयाणलग्नकुण्डल्याम्) सौम्यखेटाः (सौम्यग्रहा:) केन्द्रे (प्रथम चतुर्थसप्तमदशमस्थानेषु) कोणे (नवमे पञ्चमे वा स्थाने) शुभाः स्युः पापाश्च न्यायषट्खेषु (तृतीयकादशषष्ठदशमस्थानेषु) शुभाः भवन्ति। चन्द्रः लग्नान्त्यारिरन्ध्रे (लग्नद्वादशषष्ठाष्टमस्थानेषु) स्थित: नेष्टः (अशुभफलदाता) शनिः खे (दशम स्थाने) अशुभः, शुक्रः अस्ते (सप्तमभावे) नेष्टफलदः. लग्नेट् च (यात्रालग्नस्वामी) नगान्त्यारिरन्ध्र (सप्तमद्वादशषष्ठाष्टमस्थानस्थः) अनिष्टफलदः। अर्थ - प्रयाण समय की लग्नकुण्डली में सौम्यग्रह (चन्द्र, बुध, गुरु और शुक्र) केन्द्र या कोण में (१, ४, ७, १०, ९ और ५ स्थानों में) हों तो वे शुभफलदायी होते हैं तथा पापग्रह तृतीय एकादश षष्ठ और दशम स्थान में स्थित इष्ट फलदाता होते हैं। चन्द्र की स्थिति लग्न में, बारहवें में, छठे में और आठवें में नेष्टफलदात्री नहीं होती तथा यात्रालग्न पति का भी सातवें बारहवें छठे और आठवें स्थान में रहना भी अनिष्टकारक होता है। यात्रालग्न ग्रहस्थिति विषय में वसिष्ठमत नन्नि क्रूरास्त्रिषष्ठायभावान् हित्वा परान्सदा । पुष्णन्नि सौम्यखचराः षष्ठाष्टान्त्यं विना परान् ॥ “लग्नषष्ठाष्टमं हन्ति चन्द्रः शुक्रोऽस्तगस्तथा मृत्युलग्नस्थितचन्द्रो यातुर्मृत्युप्रदः सदा।" अर्थ - तीसरे, छठे एवं ग्यारहवें भावों से अतिरिक्त भावों में (स्थानों में) स्थित पापग्रह उन भावों का नाश करते हैं तथा छठे, आठवें और बारहवें स्थानों को छोड़कर अन्य स्थानों में बैठे हुए शुभग्रह उन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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