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________________ मुहूर्तराज ] यात्रा में दिशानुसार समय बल – (मु. - - (मु.चि.या. प्र.श्लो. ५४ वाँ) उषः कालो विना पूर्वाम् गोधूलिः पश्चिमां विना । विनोत्तरां निशीथः सन् याने याम्यां विनाभिजित् ॥ अन्वय याने उष:काल पूर्वां (पूर्वदिग्यात्रां) विना सन् (शुभ) गोधूलि : पश्चिमां विना सन् (शुभ:) निशीथः (अर्द्धरात्रम्) उत्तरां विना सन् तथा चामिजिवेला याम्यां (दक्षिणदिशम् ) विना सन् (श्रेष्ठ) अर्थात् उषसि पूर्वव्यतिरिक्तदिशासयात्रा प्रशस्ता गोधूलिवेलायाम् पश्चिमदिग्व्यतिरिक्तदिशासु यात्रा शुभा, निशीथे उत्तरदिशातिरिक्तदिशासु यानम् शुभम् अभिजिवेलायाम् च दक्षिणदिगतिरिक्तदिशासु यात्रा प्रशस्ना इति निष्कृष्टोऽर्थः भवति तथाति प्रयाणे रविर्दक्षिणस्थः श्रेयानिति उष:काले सूर्यं दक्षिणं कृत्वा उतरां व्रजेत् मध्याह्ने सूर्यं दक्षिणं कृत्वा पूर्वां व्रजदे अपराह्नेऽपि रविं दक्षिणं कृत्वा दक्षिणां गच्छेत् मध्यरात्रौ चापि रविं दक्षिणं विधाय पश्चिमां दिशं गच्छेत् इति “उषःकालो” इति पद्यस्य वस्तुतः अर्थः अवगन्तव्यः। Jain Education International अर्थ - उष:काल में पूर्वदिशा को गोधूलि वेला (सायंकाल ) में पश्चिम को, अर्धरात्रि में उत्तर को तथा अभिजिद् वेला अर्थात् मध्याह्न में दक्षिण दिशा को त्यागकर यात्रा करना श्रेयस्कर है, किन्तु इससे यह तात्पर्य नहीं लेना चाहिए कि उष:काल में पूर्वातिरिक्त अन्य तीनों, सायंकाल में पश्चिमातिरिक्त तीनों, अर्धरात्रि में उत्तरातिरिक्त तीनों और मध्याह्न में दक्षिणारिक्त तीनों दिशाओं की यात्रा शुभ है क्योंकि यात्रा में रवि को दणिणस्थ ही लेना सभी आचार्यों ने तथा स्वयं चिन्तामणि कार ने भी शुभ कहा है, अतः पूर्वार्द्ध में (उष:काल में ) उत्तरदिशा की मध्याह्न में पूर्वदिशा की, अपराह्न में दक्षिण की ओर मध्यरात्रि में पश्चिम दिशा की ही यात्रा करनी चाहिए क्योंकि इस प्रकार कालानुसार यात्रा करने पर ही रवि यात्राकर्त्ता के दाहिनी ओर रह सकता है। इसी बात को स्पष्टतया श्रीवसिष्ठ कहते हैं [ १३३ पूर्वाहणेऽप्युत्तरां गच्छेत् प्राचीं मध्यन्दिने तथा । दक्षिणां चापराहणे तु, पश्चिमामर्धरात्रके ॥ न तत्राङ्गारको विष्टिर्व्यतीपातो न वैधृति । सिद्धयन्ति सर्वकार्याणि, यात्रायां दक्षिणे रविः ॥ अर्थ - पूर्वाह्ण में रवि पूर्व दिशा में रहता है अतः उसे दाहिनी ओर रखते हुए उत्तर की मध्याह्न में रवि दक्षिण दिशा में रहता है अतः उसे ( रवि को ) दाहिनी ओर रखते हुए पूर्व की अपराह्ण में रवि पश्चिम दिशा में रहता है, अतः उसे दाहिनी ओर रखते हुए दक्षिण की एवं अर्धरात्रि में रवि उत्तर दिशा में रहता है अतः उसे दक्षिण हाथ की ओर रखते हुए पश्चिम की यात्रा शुभकारिणी होती है क्योंकि यात्रा में सूर्य को दाहिनी ओर रखना ही शुभफलद माना गया है। रवि को दाहिनी ओर रखने से जिन-जिन कुयोगों का निवारण होता है एवं सर्वकार्य सिद्ध होते हैं, इस विषय में श्री वसिष्ठ कहते हैं कि यात्रा में दाहिनी ओर सूर्य के रहते अंगारक दोष भद्रा, व्यतिपात एवं वैधृति आदि दोष नहीं लगते तथा सर्वकार्य सिद्ध होते हैं। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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