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मुहूर्तराज ]
[११९
-परिधि यन्त्र
आग्नेय
ईशान
कृ.
रो.
मृ.
आ.
पु.
पु.
आ.
. भर. घ. शत. पू.भा. उ.भा. रे. अश्वि
मघा पू. फा. उ. फा. ह. चि. स्वा. वि.
परिध रेखा
श्र. अभि. उ.षा. पू.षा. मू. ज्ये. अनु.
bekle
पश्चिम
*
यात्रा में अयनशुद्धि-(मु.चि.या.प्र. श्लो. ३९ वाँ)
सौम्यायने सूर्यविधू तदोत्तरां प्राची व्रजेत्तौ यदि दक्षिणायने ।
प्रत्यग्यमाशां च तयोर्दिवानिशं भिन्नायनत्वेऽथ वधोऽन्यथा भवेत् ॥ अन्वय - यदि सूर्यविधू सौम्यायने गतौ भवेताम् तदा उत्तरां प्राची च दिशम् व्रजेत् (यायात्) यदि तु तौ (रविचन्द्रौ) दक्षिणायने (दक्षिणायनगतौ भवेताम्) तदा प्रतीची दक्षिणां च व्रजेत्। तयोः (सूर्याचन्द्रमसोः) भिनायनत्वे अयनभेदे सति दिवा निशं व्रजेत्, यथा यदि सूर्यचन्द्रौ भिन्न भिन्ने अयने तदा यस्मिन्नयने सूर्यः तां दिशं (उत्तरां दक्षिणां वा) दिवा व्रजेत्। चन्द्रश्च यस्मिन्नयने तां दिशमुत्तरां दक्षिणां वा रात्रौ व्रजेत्। अथ यदि कश्चिदुक्तप्रकारमपहाय अन्यथा व्रजेत् तदा यातुः वधो भवेत्। __ अर्थ - यदि सूर्य और चन्द्रमा समान अयनगामी होकर यदि उत्तरायण में हों तो उत्तर और पूर्व दिशा की यात्रा शुभ है और यदि दोनों दक्षिणायन में हों तो दक्षिण और पश्चिम की ओर यात्रा करनी चाहिए। यदि दोनों के अयन भिन्न हों तो जिस अयन में सूर्य हो उस अयन में दिन को और जिस अयन में चन्द्रमा
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