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[ मुहूर्तराज
-दिग्द्वारनक्षत्र-तत्तत्स्वामिग्रह एवं यात्रा शुभाशुभ ज्ञापक सारणी
क्र.सं. दिशाएँ
द्वार नक्षत्र एवं उनके स्वामी
यात्रार्थ विहित दिशा विदिशा
यात्रार्थ मध्यम एवं निषिद्ध
दिशा विदिशा
| पूर्व नं. स्वा .
मध्यम उत्तर दि.
कृ. रो. मृ. आ. पु. पु. आ. | म .बु. गु. शु. श. र. च.]
पूर्व दिशा एवं आग्नेय
कोण
निषिद्ध दक्षिण एवं पश्चिम तथा शेष उ.दि.
दक्षिण दिशा एवं नैऋत्य
पश्चिम दि.
दक्षिण नं. स्वा
म.पू.उ.फा.ह.चि.स्वा.वि.1 [ म.बु.गु.शु.श.र.चं. ]
कोण
| पूर्व तथा उत्तर तथा
शेष उप दिशा
३ | पश्चिम नं. |
दक्षिण दि.
अ.ज्ये.मू.पू.षा.उ.मा.अभि.श्र.| पश्चिम दिशा एवं वायव्य [म. बु. गु. शु. श. र. च. ]
कोण
पूर्व तथा उत्तर तथा शेष उप दिशा
स्वा .
x
| उत्तर नं.
ध.श.पू.भा.उ.भा.रे.अ.भ. 1 | म.बु.गु.शु.श.र.चं.
उत्तर दिशा एवं ईशान
कोण
पूर्व दि.
दक्षिण एवं पश्चिम तथा शेष उप दि.
स्वा .
समय अमूल्य है। सुकृत कार्यों के द्वारा जो कोई उसको सफल बना लेता है, वही पुरुष जानकार और भाग्यशाली है। जो समय चला जाता है वह समय लाख प्रयत्न करने पर भी वापस नहीं मिलता। बादशाह सिकन्दर जब मरण-पथारी पर पड़ा, तब उसने अपने सारे परिवारों, अमीर, उमरावों और वैद्य हकीमों को बुलाकर कहा-अब मैं जानेवाला हूँ, अभी इन्तेजाम बहुत करना है, अतः कोई भी मेरे जीवन का आधा घंटा भी बढ़ा दे तो उसको प्रति मिनिट का मुंहमाँगा रुपया दिया जाएगा। सबने कहा कि इस संसार में ऐसा कोई भी इल्म, विद्या, विद्या, जड़ी-बूटी आदि नहीं है जो आयुष्य की एक पल भी अधिक या कम कर सके। बादशाह ने इस प्रकार का स्पष्ट जवाब सुनकर अपने दफ्तर में लिख दिया कि आयुष्य की एक भी घड़ी या पल बढ़ाने वाला कोई नहीं है। अत: जो इसको व्यर्थ खो देता है। उसके समान संसार में दसरा कोई मर्ख नहीं है।
-श्रीराजेन्द्रसूरि
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