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________________ ११२ ] [ मुहूर्तराज इसी आशय को लेकर स्वरोदय में कहा गया है दक्षिणस्थः शभःकालः पाशो वामदिगाश्रयः । - यात्रायां समरे श्रेष्ठः ततोऽन्यत्र न शोभनः ॥ अर्थ - काल का दक्षिण की ओर (अपनी दाहिनी बाजू) रहना और पाश का वाम दिशा की ओर (अपनी बाईं बाजू) रहना यात्रा समय और युद्ध प्रयाण में श्रेष्ठ है, सामने तथा पीछे रहना अहितकर है। राहुचार ज्ञान–(आ.सि.) राहुरसम्मुखवामोऽष्टसु यामार्द्धष्वहर्निशं धुमुखात् । क्रमशः षष्ठयां षष्ठयामिष्टः प्राच्यादिषु प्रचरन् ॥ अन्वय - द्युमुखात् अहर्निशं अष्टसु अष्टसु यामार्थेषु प्राच्यादिषु क्रमश: षष्ठयां षष्ठयां (दिशि) प्रचरन् राहुः असम्मुखवाम (पृष्ठगत: वामोगतो वा) इष्टः (शुभदः) भवति। ___ अर्थ - दिन के प्रारम्भ से (सूर्योदय समय से) दिवस और रात्रि के आठ-आठ अर्धप्रहरों में पूर्वादि दिशाओं में क्रमश: षष्ठी-षष्ठी दिशा में भ्रमण करता हुआ यह राहु यात्रा समय में पीछे अथवा बाईं ओर रहे तो शुभकारक है। अर्थात् जिस ओर राहु की स्थिति हो उससे दाहिनी ओर की दिशा में अथवा पीछे की ओर प्रयाण करना श्रेयस्कर है। राहु को सामने अथवा दाहिनी ओर रेखना अशुभकारी है। हर्ष प्रकाश में भी "जामद्धे राहु गई पू.वा.दा.ई.प.अ.उ. ने दिसिसु" अर्थात् सूर्योदय से आधे-आधे प्रहर राहु की गति पूर्व, वायव्य, दक्षिण, ईशान, पश्चिम, आग्नेय, उत्तर और नैऋत्य में होती है। यहाँ छठी-छठी दिशाओं में जो राहुगति कही गई है वह दक्षिण क्रम से (पूर्व, आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य, पश्चिम, वायव्य, उत्तर और ईशान इस प्रकार) कही गई है। यदि वामक्रम से (पूर्व, ईशान, उत्तर, वायव्य, पश्चिम, नैऋत्य, दक्षिण और आग्नेय इस प्रकार) गणना की जाय तो राहु की आर्धप्रहरिक स्थिति सूर्योदय वेला से लेकर चौथी-चौथी दिशा में ही होगी। इसी आशय को लेकर “नारचन्द्र” में कहा गया है अष्टासु प्रथमायेषु प्रहरार्धेष्वहर्निशम् । पूर्वस्याः वामतो राहुस्तुर्याम् तुर्याम् व्रजेद्दिशम् ॥ प्रथमायेषु अष्टासु प्रहरार्थेषु अहर्निशम् (अहोरात्रम्) पूर्वस्या: (पूर्वदिशात्:) वामत: (व्युत्क्रमदिगवस्थित्याः) तुर्यां तुर्यां चतुर्थी चतुर्थी दिशम् (दिग्देशम्) व्रजेत्। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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