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________________ मुहूर्तराज ] [९३ अन्वय - यदा व्ययार्थस्थौ ऋज्वनृजू (द्वादशस्थः पापग्रह: मार्ग गति: धनस्थ: पापग्रह: वक्रगति:) स्याताम् तदा सा कर्तरी ज्ञेया (एल्नामदोषः)। सा कर्तरी मृत्युदारिद्यशोकदा (भवति) ___ अर्थ - यदि बारहवें स्थान कोई भी पापग्रह मार्गगति होकर स्थित हो और द्वितीयस्थान में कोई पापग्रह वक्रगति होकर स्थित हो तो इस दोष को कर्तरी कहते हैं। लग्नविंशोपका - (मु.चि.वि.प्र. श्लो. ९२वाँ) द्वौ द्वौ ज्ञभृग्वोः पञ्चेन्दौ, रवौ सार्धंत्रयो गुरौ । रामा मन्दागुकेत्वारे साधैंकैकं विशोपकाः ॥ अन्वय - ज्ञभृग्वोः (रेखाप्रदयोः सतोः) द्वौ-द्वौ विंशोपकौ, इन्दौ (रेखादे सति) पञ्च, रवौ (तादृशे) सार्धत्रयो, गुरौ (रेखादस्थाने) रामा: मन्दागुकेत्वारे साधैकैकं विंशोपका: (ज्ञेयाः) अर्थ - बुध और शुक्र के २-२, चन्द्र के ५ सूर्य के ३॥ गुरु के ३ शनि राहु केतु और मंगल के १॥१॥ विंशोपक होते हैं। ये ग्रह तभी विंशोपक देते हैं, जो कि पूर्व श्लोक “त्र्यायाष्टुषट्सु" के अनुसार रेखादातृ स्थानों स्थित हों। लग्नभंगकारी कर्तरी आदि दोषों का परिहार (मु.चि.वि.प्र. श्लो. सं.) पापौ कतरिकारको रिपुगृहे नीचास्तगौ कर्तरी । दोषो नैव सितेऽरिनीचगृहगे तत्वष्ठदोषोऽपि न ॥ भौमेऽस्ते रिपुनीचगे नहि भवेद् भौमोऽष्टमो दोषकृत् । नीचे नीचनवांशके शशिनि रिःफाष्टारिदोषोऽपि न ॥ अन्वय - (यदा) कर्तरीकारको (पूर्वपद्यप्रकारेण कर्तरीदोषप्रदौ) पापौ रिपुगृहे नीचास्तगौ वा (स्याताम्) तदा कर्तरीदोषो न (भवति) एवं यदि सिते (शुक्रे) अरिनीचगृहगे (स्वकीयशत्रु नीच-राशिगते) तत्वष्ठदोषः अपि (शुक्रस्य षष्ठस्थानस्थितस्य दोषः अपि) न, भौमे च अस्ते रिपुनीचगे सति स: अष्टमो भौम: दोषकृत न (भवति) तथा च शशिनि (चन्द्रे) नीचे (स्वनीचराशौ) नीचनवांशके वा स्थिते तदा तस्य रि:फाष्टारिदोषः अपि न (भवति) ___ अर्थ - यदि कर्तरीदोषकारक ग्रह स्वशत्रुग्रह की राशि में स्थित हों, अथवा स्वनीचराशि में या अस्त हों तो कर्तरीदोष नहीं लगता। इसी प्रकार यदि षष्ठ स्थान में स्थिति से उत्पन्न दोष भी नहीं लगता। तथा अष्टमस्थान में स्थित मंगल भी यदि अस्त रिपुराशिस्थ अथवा नीचराशिस्थ हो तो वह दोष कारक नहीं है। और चन्द्रमा यदि १२, ८ और ६ स्थानों में से कहीं पर भी नीचराशीय अथवा नीचग्रह के नवांश का हो तो उस चन्द्रमा का भी दोष प्रभावी नहीं होता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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