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________________ ९२ ] [ मुहूर्तराज अतिरिक्त स्थानों में स्थित, शुक्र ८, ३, ७, ६ और १२ वें स्थान के अतिरिक्त स्थानों में स्थित होने पर रेखाएँ देते हैं। -ग्रह रेखा स्थान ज्ञापक सारणी ग्रह → मंगल | बुध । शनि राह रेखा देने के स्थान लग्न में निषिद्ध ग्रह - (मु.चि.वि.प्र. श्लोक ८६ वें की टीका में) - त्रिविक्रम त्याज्या लग्नेऽब्धयो मन्दात् षष्ठे शुक्रेन्दुलग्नपाः । रन्धे चन्द्रादयः पञ्च सर्वेऽस्तेऽब्जगुरु समौ ॥ अन्वय - मन्दात् अब्धयः (शनिरविचन्द्र भौमा:) लग्ने, शुक्रेन्दुलग्नपाः षष्ठे, चन्द्रादयः पञ्च (चन्द्रभौमबुधगुरुशुक्राः) रन्ध्रे सर्वे अस्ते त्याज्याः अब्जगुरु स्रमौ (समानफलदातारौ) अर्थ - शनि, रवि, सोम और मंगल लग्न में, शुक्र चन्द्र और लग्नपति छठे में चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु और शुक्र ८ में, सभी ग्रह सातवें में निविद्ध कहे गये हैं। चन्द्र और गुरु दोनों समफलद हैं। कर्तरी दोष - लग्नात्पापावृज्वनृजू व्ययार्थस्थौ यदा तदा । कर्तरी नाम सा ज्ञेया मृत्युदारिद्रयशोकदा ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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