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मुहूर्तराज ]
[६१ भद्रानिवास एवं तत्फल- (आ.सि.टी.)
स्वर्गेऽजौक्षणकर्केष्वधः स्त्रीयुग्मधनुस्तुले ।
कुंभमीनालिसिंहेषु विष्टिर्मत्र्येषु खेलति ॥ अर्थ - मेष, वृष, मकर और कर्क के चन्द्रमा में यदि भद्रा हो तो उसका निवास स्वर्ग में माना गया है। कन्या, मिथुन, धनु और तुला के चन्द्र की भद्रा का वास पाताल में है और कुंभ, भीन, वृश्चिक तथा सिंह के चन्द्रमा की भद्रा पृथ्वी पर रहती है।
स्वर्ग में रहने वाली शुभकारिणी है पातालस्थ भद्रा धन लाभ कराती है, किन्तु मृत्युलोक स्थित भद्रा सर्व कार्यों का विनाश करती है। भद्रा मुखपुच्छ विभाग-(मु.चि.शु.प्र. श्लोक ४४वां)
पञ्चद्वयद्रिकृताष्टरामरसभूयामादिघटयः शराः । ५ २ ७ ४ ८ ३ ६१ विष्टेरास्यमसद् गजेन्दुरसरामाद्रयश्विबाणाब्धिषु ॥
८ १६३ ७२५ ४ यामेषु + अन्त्यघटोत्रम् शुभकरं पुच्छंतथा वासरे ।
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विष्टिस्तिथ्यपरार्धजा शुभकरी रात्रौ तु पूर्वाधजा ॥ अन्वय -, (चतुर्थ्यष्टम्येकादशीपूर्णिमातृतियासप्तमीदशमीचतुर्दशीनां) तिथीनां क्रमश: शरा: पञ्चद्वयद्रिकृताष्टरामरसभूयामादिघटयः विष्टेः आस्यम् असद् (एतासामेवोपर्युक्तानां तिथीनाम्) क्रमश: गजेन्दुरसरामाद्रयश्विबाणाब्धिषु यामेषु अन्त्यघटीत्रयम् (विष्टे:) पुच्छं (तत्) शुभकरं तथा तिथ्यपरार्धजा (तिथेउत्तरार्धभागगता = रात्रिभद्रा) भद्रा यदि वासरे पूर्वार्धजा (तिथिपूर्वभागस्था = दिवाभद्रा) यदि रात्रौ तदा शुभकरी स्यात्।
अर्थ - शुक्ल पक्ष की चतुर्थी, अष्टमी, एकादशी और पूर्णिमा तथा कृष्ण पक्ष की तृतीया, सप्तमी, दशमी और चतुर्दशी की भद्रा का मुख क्रमश: इन्हीं उक्त तिथियों के पाँचवें, दूसरे, सातवें, चौथे, आठवें, तीसरे, छठे, एवं पहले प्रहरों की आदि की ५ घटी मान का है। तथा उसका पुच्छ (पूंछ) उपरिलिखित तिथियों के आठवें, पहले, छठे, तीसरे, सातवें, दूसरे, पांचवें और चौथे प्रहरों की अन्तिम तीन घटीमान का होता है। भद्रा मुख अशुभ तथा पुच्छ शुभ है। एवं तिथि के उत्तरार्ध में रहनेवाली भद्रा (शुक्ला ४ एवं ११ तथा कृष्णा ३ तथा १० की) दिन में दोषदायिनी नहीं है और पूर्वार्द्ध में रहने वाली (शुक्ला ८ एवं १५ कृष्णा ७ एवं १४) यदि रात्रि में हो तो भी दूषण नहीं करती।
भली भांति भद्रा के मुख एवं पुच्छ ज्ञान के लिए नीचे एक सारणी दी जा रही है
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